मेरा आसमां
मेरा आसमां
विवाह के पश्चात श्वसुरगृह के सुख संसार की व्यस्तता के बीच बाबुल के घर समय निकाल कर जाने पर पड़ोस की कम्मो ताई का भी जिक्र चल पड़ा । तभी याद आने लगा वह समय जब "अरी रुक ना !पल भर तो ठहर ! पैरों में तो इसके जैसे चकरघिन्नी लगी हुई है।"कमर पर पल्लू लपेट एक हाथ माथे पर मारते हुये दूसरा हाथ नचा नचा कर कम्मो ताई घर को गुंजायमान करते हुये जैसे सारे जग को सुनाते हुये निन्नी पर क्रोध की वर्षा किये जा रही थी और निन्नी थी कि ऊपर से नीचे कभी दुछत्ती से पलंग पर तो कभी पलंग से जमीन पर कूद कर उछल फांद किये जा रही थी। न बीते कल पड़ी डांट से सबक ना ही आने वाले कल की चिन्ता ।कुछ कहो तो फाटक से जबाब हाजिर ।" "मुझे हर समय टोका न करो अम्मा । घर के खूंटे से बंध कर रहने वाली बछिया नहीं हूँ मैं । अपने हिस्से का आसमान मैं खुद चुनूंगी ।" तभी किसी की खिलखिलाहट ने हमारा ध्यान भंग कर दिया ।देखा तो सामने पुलिस की वर्दी में चुलबुली निन्नी उर्फ निकिता खड़ी हुई थी।