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अभय 'विद्रोही'

Romance Abstract

5.0  

अभय 'विद्रोही'

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NH 27 : कॉलेज की यादें

NH 27 : कॉलेज की यादें

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आज अयान की शादी थी ! रितेश ने रात को ही ड्राइवर से कह रखा था कि सुबह आठ बजे निकलना है, गाड़ी तैयार रखे ! सो निर्धारित समय के अनुसार सुबह आठ बजे रितेश, ऋतु के साथ फैज़ाबाद के लिए निकल पड़ा ! दिल्ली से फैज़ाबाद की दूरी लगभग नौ घंटे की थी ! सात घंटे और दो पड़ाव के बाद अब लगभग डेढ़ घंटे की यात्रा और बची थी...अचानक से रितेश ने ड्राइवर को गाड़ी साइड में लगाने को कहा ! ड्राइवर ने गाड़ी साइड में लगाया तो ऋतु ने पूछा यहां क्यों रुके ? रितेश ने कहा वो सामने मोमोज़ की दुकान दिख रही है, आओ वहां चलते है, थोड़ा खा पी लेते है ! ऋतु ने कहा अरे बैग में तो अभी बहुत सारा खाने को है, इसपर रितेश ने बच्चे की तरह मुस्कुराते हुए कहा 'अरे आओ तो' ! कौन सा इम्पोर्टेन्ट लेक्चर मिस हो रहा...वहां सड़क के किनारे बैठ कर मोमोज़ खाने का मज़ा ही कुछ और है ! और मौसम देखो ज़रा, ऐसा लग रहा जैसे बरसात होने वाली है...ये मौसम तो मोमोज़ के साथ डेडली कॉम्बिनेशन है ! ऋतु ने मुस्कुराते हुए कहा 'जी सर, चलिए' ! अब ऋतु और रितेश उस ठेले पर लगे सड़क के किनारे मोमोस की दुकान पर खड़े थे ! रितेश ने मोमोज़ वाले से मोमोज़ बनाने को कहा और खुद ऋतु के साथ बेंच पर बैठ गया ! वो सामने आ जा रही गाड़ियों और उनके शोर के बीच खमोशी से सड़क की तरफ देख रहा था। बहुत कुछ बदल गया था यहां पिछले कुछ सालों में, बड़े बड़े सिंपल होर्डिंग्स को अब नियॉन लाइट्स वाली होर्डिंगस ने 'रिप्लेस' कर दिया था, बगल में जो कभी लॉन हुआ करता था अब अपार्टमेंट में परिवर्तित हो चुका था, टाटा मोटर्स की आफिस जो कभी बंद रहा करती थी अब गंगनचुम्बी इमारत बनकर चमक रही थी मानो उसे बुर्ज खलीफा को मात देने का इरादा हो... मोमोज़ वाले ने मोमोज़ देते हुए आवाज़ लगाई 'सर ये लीजिए' पर रितेश ने शायद जैसे कुछ सुना ही नहीं, वो अब भी सड़क को ही देखे जा रहा था ! ऋतु ने रितेश को झकझोरा, अचानक के इस झटके से रितेश अपने खयालों से बाहर आया ! ऋतु ने पूछा क्या हुआ ? पिछले कुछ मिनट से किस सोच में डूबे हो ? रितेश ने एक लंबी सांस ली और बताना शुरू किया... जानती हो ऋतु, तुम जिस सड़क के किनारे बैठी हो न ये नेशनल हाईवे 27 है 'NH27' और पीछे जो पेड़ो से छिपा वो बिल्डिंग देख रही हो न, वो मेरा कॉलेज है ! आज से ६ साल पहले, मैंने यहीं से इंजीनियरिंग करी थी...ये मोमोज़ जो तुम खा रही हो न, मेरे उन चमचमाते दिनों की सबसे बेहतरीन याद है कि कैसे हम दो लेक्चर्स के बीच दोस्तों के साथ भाग कर यहां आ जाया करते थे और देर से क्लास में जाने पर फैकल्टीज़ से लेट आने का नया नया बहाना बनाते थे ! एक मोमोज़ पर इतना छीना झपटी होती थी कि उसके तीन चार टुकड़े हो जाते थे, कोई इधर लेकर भागता, कोई उधर...कितने खूबसूरत थे वो दिन ! ऐसी दोस्ती थी कि कभी अलग नही होगे, कभी नही बिछड़ेगे और आज देखो की वक़्त ने सबको एक दूसरे से दूर कर दिया है, कोई किसी शहर में है कोई किसी ! सब अपने कामों में व्यस्त है। क्यों खो जाते है ज़िन्दगी के ये खूबसरत लम्हे ऋतु ? ये पूछते हुए रितेश का गला भर आया था और ये सब सुनते हुए ऋतु की आंखे ! ऋतु समझ सकती थी कि रितेश अपने पुराने दिनों को कितना मिस करता था ! उसके कमरे की एक दीवार बस कॉलेज के दिनों की खीचीं तस्वीरों से पटी पड़ी थी जिनको वो वक़्त बेवक़्त देखा करता था। मोमोज़ वाला भी शांति से रितेश की तरफ देख रहा था और बड़े गौर से उनकी बातें सुन रहा था ! अचानक उसने अपनी नज़र को और गड़ाकर रितेश को देखा और थोड़ा याद करते हुए बोला कि भईया आप रितेश तो नही है, मेकैनिकल वाले ! रितेश ने मुस्कुराते हुए कहा 'भईया बड़ा देर कर दिए आप पहचानने में, कैसे है ?' वो मुस्कुराते हुए बोला 'अरे का भईया, आप भी तो एकदम से दाढ़ी वाढ़ी सब साफ कर दिए है और मैडम के साथ बैठे है तो कैसे पहचानते ? कॉलेज के टाइम में तो दाढ़ी बढ़ाये, बस लड़को के साथ ही दिखते थे' ! रितेश ने भी मुस्कुराते हुए कहा 'हां भईया अब वो लड़कपन कहाँ रहा जब मार-पीट, हो-हल्ला मचाते, किसी तो ताड़ते यहां से निकलते थे ! अब तो बहुत कुछ बदल गया'। भईया आपलोगों को कैसे भूल सकता हूँ, चेहरा एक बार को भूल भी जाऊं, कारनामा थोड़े ही भूलूंगा कि कैसे आपके दोस्तों ने मिलकर आपकी क्रश के बर्थडे पर तीन घंटे के लिए मोमोज़ फ्री करवा दिया था और उन तीन घंटो में जितना मोमोज़ बिका, उसका पेमेंट आप लोगों ने किया था ! हाहाहाहा...अपने इस पागलपन का किस्सा सुनते हुए रितेश हंस पड़ा और पीछे से ऋतु भी ! 'क्या भइया आपको वो अबतक याद है ?' रितेश ने हंसते हुए ही पूछा ! 'अरे भइया पिछले बारह साल से दुकान चला रहा हूँ कबहु ऐसा नही हुआ और आपलोग तो अलगे इतिहास रच के गए...हाहाहाहा' कहते हुए मोमोज़ वाला ज़ोर से हंस पड़ा ! उसे सब याद था ! हल्की हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी ! रितेश ने ऋतु से कहा कि वो गाड़ी में चल कर बैठे, वो बस अभी आया ! ऋतु के जाते ही मोमोज़ वाले ने मन में कब से चल रहे सवाल को तुरंत दागा की भईया वो मैडम मिली कि नही आपको, जिनका उस दिन बर्थडे था ? 'अरे नही भईया ! हम जैसों की इतनी अच्छी किस्मत कहाँ ? हमारे जैसे लोग तो बने ही होते है प्यार कुर्बान करने के लिए...वो प्यार भी कुर्बान कर दिया !...जानते है भईया कुछ किरदार बस कहानियों में ही अच्छे लगते हैं, असल ज़िन्दगी में वो वैसे नही होते जैसा कि हम उनको अपने नज़रिए से देखते है।' मोमोज़ वाले ने बस 'हम्म' में जवाब दिया, वो भी इस अधूरी कहानी के प्रति संवेदनशील था ! 'तब आगे शादी वादी किये की नही भईया अभी ?' मोमोज़ वाले ने अगला व्यंग छेड़ा ! 'बस बाउजी लड़की खोज रहे है, मिल जाये तो कर ले...हम तो तैयार बैठे है कबसे' कहते हुए रितेश भी उसके व्यंग पर चार चांद लगाए ! फिर दोनों ज़ोर से हंस पड़े ! 'और ये मैडम कौन थी साथ में ?' पुछते हुए मोमोज़ वाले ने शायद अपना ये आखिरी संशय भी दूर कर लेना चाहा ! 'अरे भईया, ये तो मेरे ही साथ काम करती हैं, रहने वाली फैजाबाद की है ! मैं फैज़ाबाद एक शादी में जा रहा था, इनको भी घर जाना था तो हमारे ही साथ चली आयी' रितेश ने बताया। 'हमें लगा आपकी मंगेतर हैं' मोमोज़ वाले ने फिर व्यंग किया। 'हाहाहाहा क्या पता बाउजी इसे ही पसंद कर ले, आ रहे है अगले महीने इनको देखने' कहते हुए रितेश ने एक बार फिर व्यंग में पूरा साथ दिया ! फिर दोनों साथ हंस पड़े...यादें एक दफे फिर ताज़ा हो गयी थी। 'अच्छा चलता हूं भईया' कहते हुए रितेश ने उसे पैसे देने के लिए पर्स निकाला तो मोमोज़ वाला मना करने लगा कि अरे भईया छोड़िए क्या आप भी, एक तो इतने दिनों बाद आपसे मिलना हुआ है, आपसे पैसा थोड़े ही लेंगे ! पर रितेश ने पांच सौ का नोट उसे ज़बरदस्ती पकड़ाते हुए कहा कि भैया मैं आपके किसी मोमोज़ का हिसाब कर ही नही रहा ! बात तो बस इतनी सी है कि आपने जितना हम सब के लिए तब किया उसका उधार कभी चुकाया ही नही जा सकता कि कैसे हमलोग आकर यहां भीड़ लगा लेते थे चाहे पैसे हो या न हो और आप कभी टोकते नही थे ! पूरे हफ्ते का हिसाब अक्सर बाद में ही होता था हमारा ! बड़े बड़े रेस्टॉरेंट में जितने का आपका मोमोज़ है न उतना अब हम टिप देकर चले आते है, फिर भी इस मोमोज़ के आगे उस बड़े रेस्टॉरेंट का मोमोज़ फीका सा लगता है ! दोस्तो के साथ बिताए गए उन पलों की, आपके उस अतुलनीय प्यार का कोई क्या कीमत अदा कर पायेगा ? आपलोगों के समन्वय और मेल जोल से ही मैं यहां तक पहुच पाया हूँ ! रखिये ये आप, एक छोटा सा तोहफा समझकर ही रख लीजिए और ये मेरा कार्ड भी रखिये ! इसपर मेरा नंबर है, कभी कोई बात हो या कुछ सहायता चाहिए हो तो बेझिझक फ़ोन करिएगा, कहते हुए रितेश ने उन्हें एक कार्ड भी पकड़ाया ! रितेश गोयल, आयकर विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एक के नीचे एक लाइन, में ये बात कार्ड पर लिखा था ! वो पढ़ते हुए मुस्कुरा दिया, बोला 'आखिर माने नही आप, ले ही लिए सरकारी नौकरी' ! हाहाहाहा...हंसते हुए रितेश ने उत्तर दिया 'क्या करते ? इंजिनीयरिंग के वक़्त प्यार की पढ़ाई पढ़ते रहे, किसी कंपनी ने नौकरी ही नही दिया ! सो हमभी निकल गए सरकारी काम काज संभालने' ! बारिश तेज़ होती जा रही थी ! अच्छा भईया अब चलता हूँ आज्ञा दीजिये, कहते हुए रितेश वापस गाड़ी की तरफ मुड़ा ही था कि मोमोज़ वाले ने पीछे से ही चिल्लाते हुए कहा कि भईया अगली बार आप बाकी सब साथी लोगो को भी साथ ले आइएगा, उनसे भी मिलना है ! 'हाँ ज़रूर भईया' रितेश ने पीछे पलटकर कहा और गाड़ी की तरफ चल पड़ा ! फिर सब निकल पड़े अपने बचे हुए सफर पर...एक घंटे बाद जीपीएस ने राइट टर्न का निर्देश दिया और उस NH-27 के साथ ही यादों का अंबार भी पीछे छूट गया !


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