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विनाशकारी अण्डे - 6

विनाशकारी अण्डे - 6

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जून 1928 का मॉस्को


वह जगमगा रहा था, रोशनियाँ नाच रही थीं, बुझतीं और फिर से जल उठतीं। थियेटर के चौक पर बसों की सफ़ेद बत्तियाँ, ट्रामों की हरी रोशनियाँ घूम रही थीं; भूतपूर्व ‘म्यूर और मेरिलिज़’ की छत पर, उस पर चढ़ाई गई दसवीं मंज़िल के ऊपर, एक रंगबिरंगी बिजली की औरत उछल रही थी, जो ‘वर्कर्स क्रेडिट’ का एक-एक अक्षर बाहर फेंकती जा रही थी। ‘बल्शोय थियेटर’ के बाहर के चौक पर, जहाँ रात को रंगबिरंगा फ़व्वारा उछल रहा था, लोगों की भीड़ धक्का-मुक्की कर रही थी और भिनभिना रही थी। और बल्शोय थियेटर के ऊपर एक भारी-भरकम लाउडस्पीकर घोषणा किए जा रहा था:

 ‘लेफ़ोर्तोव वेटेरिनरी इन्स्टीट्यूट के मुर्गियों की बीमारी वाले टीकों के बहुत अच्छे परिणाम आए हैं। मृत मुर्गियों की संख्या में आधे से भी ज़्यादा कमी हो गई है।’

इसके बाद लाउडस्पीकर ने अपना स्वर बदल दिया, उसके भीतर कुछ घरघराहट हुई, थियेटर के ऊपर हरी रोशनी जलती-बुझती रही, और लाउडस्पीकर गहरी आवाज़ में शिकायत-सी करने लगा:

 ‘मुर्गियों के प्लेग से निपटने के लिए एक आपात-कमिटी बनाई गई है जिसमें शामिल हैं पीपल्स कमिसार फॉर हेल्थ, पीपल्स कमिसार फॉर एग्रिकल्चर, डाइरेक्टर पशु-पालन विभाग कॉम्रेड प्ताखा-पोरोस्यूक, प्रोफेसर पेर्सिकोव, प्रोफेसर पोर्तुगालोव।।।और कॉम्रेड राबिनोविच !।।।घुसपैठ की नई कोशिशें !।।।’ लाउडस्पीकर सियार की तरह खिलखिलाता और रोता रहा, - ‘मुर्गियों के प्लेग के संबंध में !’

थियेटर का गलियारा, नेग्लिन्नी और लुब्यान्का, सफ़ेद और बैंगनी रोशनियों से दहक रहा था, किरणों से झिलमिला रहा था, साइरनों से चिंघाड़ रहा था और धूल के बादल से चकरा रहा था। तेज़ लाल-लाल रिफ्लेक्टरों से आलोकित दीवारों पर लगे बड़े-बड़े इश्तेहारों के पास लोगों के झुण्ड के झुण्ड जमा थे।

 “कड़ी सज़ा के प्रावधान को देखते हुए जनता को निर्देश दिया जाता है कि भोजन में मुर्गियों के माँस और अण्डों का उपयोग न करे। यदि प्राइवेट व्यापारी इन्हें बाज़ारों में बेचने की कोशिश करते पाए गए तो कानूनी कार्रवाई के अंतर्गत उनकी सारी सम्पत्ति ज़ब्त कर ली जाएगी। सभी नागरिक, जिनके पास अण्डे हैं, जल्दी से जल्दी उन्हें अपने निकट के पुलिस थाने में जमा कर दें।”

 ‘वर्कर्स न्यूज़पेपर’ की छत पर लगे स्क्रीन पर आसमान तक ऊँचा मुर्गियों का ढेर लगा था, और हरे-हरे अग्निशामक कर्मचारी, उनके छोटे-छोटे ढेर बनाकर उन पर पाइप से केरोसिन डालकर आग लगा देते। इसके बाद लाल-लाल लपटें स्क्रीन पर नाचतीं , बेजान धुँए का गुबार बाहर निकलता, बादलों की तरह बिखरने लगता, एक धार की तरह ऊपर उठता, चमकते अक्षर बाहर निकलते: “खोदीन्का में मुर्गियों के शव जलाए जा रहे हैं।”  

बदहवास रोशनी में नहाए दुकानों की शो-केसेस के बीच, जो रात के तीन बजे तक कारोबार करती थीं, सिर्फ दिन और रात के भोजनावकाश को छोड़कर, अन्धे छेदों से देख रही थीं कुछ ताले ठुँकी खिड़कियाँ जिन पर बैनर लगे थे ‘अण्डों का व्यापार। क्वालिटी की गारंटी।’

अक्सर, कर्कश साइरन बजातीं, फुफकारती ‘मॉस्को स्वास्थ्य विभाग।’ की एम्बुलेन्सें भारी बसों और पुलिस की गाड़ियों को ओवरटेक करते हुए निकल जातीं।        

“फिर कोई हो गया शिकार सड़े हुए अण्डों का,” भीड़ में सरसराहट होने लगती।

पेत्रोव्स्की लाइन्स पर विश्व प्रसिद्ध रेस्टॉरेंट ‘’एम्पायर’ हरे और नारंगी लैम्पों से जगमगा रहा था, और उसके भीतर की मेज़ों पर पोर्टेबल टेलिफोन्स के निकट पड़े थे शराब के धब्बों वाले कार्ड बोर्ड के नोटिस जिन पर लिखा था: ‘निर्देशों के अनुसार – ऑमलेट उपलब्ध नहीं है। ताज़े ऑयस्टर्स प्राप्त हुए हैं।’

हेर्मिटेज पार्क में, जहाँ बेजान, शिथिल हरियाली के बीच मोतियों की तरह मरियल चीनी लैम्प जल रहे थे, आँखों को चकाचौंध करते स्टेज पर गायक-जोड़ी श्राम्स और कर्मान्चिकोव कवियों की जोड़ी आर्गो और आर्गुयेव द्वारा रचित गीत गा रही थी:

आह, मम्मा, क्या करूँगा मैं

बिना अण्डों के ?             

और टॅप-डान्स कर रहे थे।

स्वर्गीय व्सेवोलोद मेयेरहोल्ड के नाम पर बना थियेटर, जो, जैसा कि सबको ज्ञात है, सन् 1927 में, पूश्किन के ‘बरिस गदुनोव’ के प्रस्तुतिकरण के दौरान नग्न बोयारों वाले झूले के टूट जाने के कारण मर गये थे, रंगबिरंगी रोशनियों वाला इलेक्ट्रिक इश्तेहार दिखाए जा रहा था, जिसमें रिपब्लिक के प्रसिद्ध डाइरेक्टर, मेयेरहोल्ड के शिष्य कुख़्तेरमिअन द्वारा प्रस्तुत एरेन्डोर्ग के नाटक ‘मुर्गियों की बिदाई’ का ज़िक्र था। बगल में ही, ‘एक्वेरियम’ गार्डन में, निओन की रंगबिरंगी की रोशनियाँ फेंकते और अर्धनग्न औरत का शरीर दिखाते हुए, ओपन-एयर स्टेज की हरियाली में तालियों के शोर के बीच लेखक लेवित्सेव का शो ‘मुर्गियों के बच्चे’ चल रहा था। और त्वेर्स्काया पर कान के नीचे एक एक लालटेन लटकाए, सर्कस के गधों की एक क़तार चली जा रही थी, जिनकी पीठ पर रखे थे जगमगाते पोस्टर्स। कोर्श थियेटर में रोस्तान के ‘शांतेक्लेर’ का पुन: प्रदर्शन हो रहा था।

मोटर-गाड़ियों के बीच से भागते हुए अख़बार बेचने वाले लड़के चीख़ रहे थे:

”ज़मीन के नीचे ख़तरनाक दौलत ! पोलैण्ड ख़तरनाक युद्ध की तैयारी में ! प्रोफ़ेसर पेर्सिकोव के ख़तरनाक आविष्कार !”

 भूतपूर्व निकितिन सर्कस के ताज़े गोबर से लिपे गीले भूरे अरेना में मुर्दना-सफ़ेद जोकर बोम ने ड्रॉप्सी के कारण फूल गए बीम से कहा:

 “मुझे मालूम है कि तू इतना दुखी क्यों है !”

 “कों ?” फिसफिसाते हुए बीम ने पूछा।

 “तूने अपने अण्डे ज़मीन में गाड़ दिए थे, मगर पन्द्रहवें सेक्टर की पुलिस को वो मिल गए।”

 “हा-हा-हा-हा,” सर्कस में दर्शक इतनी ज़ोर से हँस पड़े कि नसों में बड़े प्यार से खून बहने लगा, और प्राचीन गुम्बद के नीचे ट्रेपेज़ी और मकड़-जाले हिलने लगे।

 “आ-आप् !” जोकर्स तीखे सुर में चिल्लाए, और एक तन्दुरुस्त सफ़ेद घोड़ा लाल पोषाक पहनी सुडौल पैरों वाली, ग़ज़ब की ख़ूबसूरत औरत को बिठाकर बाहर लाया।

बिना किसी की ओर देखे, किसी पर भी ध्यान न देते हुए, वेश्याओं के धक्कों और नाज़ुक सिसकारियों का जवाब दिए बिना, उत्तेजित और अकेला, अप्रत्याशित प्रसिद्धी से मंडित पेर्सिकोव मोखोवाया स्ट्रीट पर मानेझ की निओन से प्रकाशित घड़ी की ओर चला जा रहा था। यहाँ, इधर-उधर देखे बगैर, अपने ख़यालों में डूबे वह एक विचित्र, पुराने फैशन के आदमी से टकरा गया, उँगलियाँ बड़ी ज़ोर से उस आदमी की कमर में लटके रिवॉल्वर के लकड़ी के होल्स्टर से टकराईं।

 “आह, शैतान !” पेर्सिकोव पतली आवाज़ में चीखा, “माफ़ कीजिए।”

 “माफ़ी चाहता हूँ,” अप्रिय आवाज़ में उस आदमी ने कहा, और लोगों की रेल-पेल में वे किसी तरह एक दूसरे से आज़ाद हुए। और प्रेचिस्तेन्को की ओर बढ़ता हुए प्रोफ़ेसर फ़ौरन ही इस टक्कर के बारे में भूल भी गया।


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