कांच का बिखरना
कांच का बिखरना
कमला और नाथ की शादी को अभी दो ही वर्ष हुए थे। शादी के शुरुआती दिनों में वे दुनिया से अनजान आलिंगनबद्ध हो इस तरह घुमा करते कि पति-पत्नी कम, प्रेमी-प्रेमिका ज्यादा नज़र आते। लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था।
दफ्तर में आधुनिक विचारधारा रखने वाली लड़की के साथ शारारिक मांग के ओट में छिपी नाथ की एक गलती और चीज़े बद से बद्तर हो चली।
उस एक वाकये को छिपाने के लिए नाथ को सौ झूठ बोलने पड़े। चाहत थी की कोई उसकी कमजोरी जान न पाए, और बात भूत में ही दब जाए पर सच सामने आ ही गया और कमला के शक को विश्वास में बदलते देर न लगी।
मौन झगड़े में और झगड़ा शारीरिक हिंसा में तब्दील हो गया। कमला के लिए हालात असहनीय हो चुकी थी। उन दोनों के तकरार के तख्त को शहद का छत्ता मान, सारे रिश्तेदार मधुमख्खी के भांति इर्द गिर्द इकट्ठा हो गए। ऐसा क्या छिपा है उस तख्त में, की सभी इतने उत्सुक। व्यक्ति नहीं दो व्यक्तित्व की भिड़ंत, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर केंद्रित कर रखा था।
समाज वालों की दखलंदाज़ी से बात बनने की जो बची खुची गुंजाईश थी वो भी खत्म हो गयी।
कमला से अलगाव के पश्चात नाथ अब प्रभुत्व की परिकल्पना से दुनिया को देखने लगा। हर रिश्ते में उसे एक ही संभावना नज़र आती, या तो तुम उस पे हावी रहोगे नहीं तो वो तुम पे। इस संकीर्ण मानसिकता को ले उसने माया की दुनिया में प्रवेश किया। अपने प्राबल्य को स्थापित करने का इच्छुक, सामने वाले को अपने प्रभाव में जकड़ने की कोशिश में वो निरंतर जुटा रहता। कुछ देर वो अपने मंसूबो में सफल भी होता। लेकिन एक समय आता जब उसके नियंत्रण में दरारे पड़ने लगती। थोड़े दिनों के पश्चात वो दूसरे रिश्ते में प्रवेश कर जाता। इसी तरह संबंधों का जुड़ने और टूटने का क्रम चलता रहा। अपने कुकर्मो से बंध पाताल की गहराइयों में वो समाता चला गया। झूठ और असुरक्षा के जंजाल में फंस आदर्शहीन नाथ कमजोर पड़ने लगा था। उसकी जर्जर होती आर्थिक स्थिति को भांप माया नगरी ने भी उससे मुँह फेर लिया।
"ताकतवर महसूस कर रहा हूं यह सोच की सब को मैंने नकार दिया।
समझ ही न पाया की दुनिया मुझे कब का दरकिनार कर चुकी।"
खुद को इस दयनीय परिस्तिथि में अकेला पा नाथ को कमला के पास वापस लौट जाने की सूझी लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी। सुना था उसने दूसरी शादी कर ली है। नाथ के अंतर्मन में संघर्ष होने लगा, "और कितना गिरेगा नाथ। क्या आज फिर उसका बसा घर उजाड़ देगा ? नहीं नहीं, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूँगा...क्या वो मुझे भूल गयी होगी..." कमला से रिश्ते को पुनःस्थापित करने के असाध्य इरादे को त्याग वो आगे बढ़ गया।
"चूर हो चुके कांच के समान बिखरा जीवन
कोशिश की इन्हें धागे से सिलने की।
बात न बनने पर गोंद का इस्तेमाल किया
कौन उसे समझाए, इन टुकड़ो का जुड़ना संभव नहीं।"
अशांत और भविष्य को लेकर अनिश्चित वो आसमान में बसे चाँद तारों में खुदको और कमला को खोजने की कोशिश करने लगा। बिना विचरण किये बस दूर से ही देख चीज़े साफ हो गयी। निर्जीव हो चुके ये असंख्य सूरज कहते हैं बीते पल की बहुत सी कहानियां। चीज़ों का मिलना और उनके मिलन से अंतरिक्ष का रोशन हो उठना। कितना अद्भुत होगा वो टकराव जब एक ही पल में पूरा ब्रम्हांड सजीव हो उठा।
"रात की नींद और उसमें बसी मेरे सपनों की दुनिया।
कितना ख़ूबदुरत था तुम्हारा साथ,
जो चाहा था उससे भी बेहतर।
तुम थी तो न कोई शिकवा, न कोई डर
प्यार भरे वो सुकून के पल ही मेरे जीवन का आधार।"