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प्यारी शिष्या

प्यारी शिष्या

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“चलो बेंच पर खड़ी हो जाओ”


बगल की कक्षा से टीचर की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही हमारी कक्षा की सभी लड़कियाँ बिल्कुल शांत होकर अपनी -अपनी स्थान पर बैठ गई। कक्षा की कुछ लड़कियाँ पुस्तक निकाल कर पढ़ने लगी, तो कई कॉपी निकाल कर लिखने लगी। मैं अपने स्थान पर और सिमट कर बैठ गई थी। ऐसा था हमारी टीचर "शापला मैडम" का खौफ


इस स्कूल में मैंने नया दाखिला लिया था। स्कूल के प्रथम दिन ही शिक्षिका के खौफ से रुबरू होना पड़ा। वह हमारी कक्षा में भी आई और चारों तरफ एक नज़र डाल कर चली गई। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था। अभी तो मेरे गिने -चुने ही दोस्त बने थे। वैसे भी मैं बहुत शर्मीली थी। किसी से ज्यादा घुल मिल नहीं पाती थी। कोई कुछ पूछता तो जवाब देने में हिचकिचाती कि कहीं कोई मुझ पर हँसेगा तो नहीं। वैसे तो मैं सभी होम वर्क पूरे मनयोग से करती। अपनी पढ़ाई करने की पूरी कोशिश करती, फिर भी मुझे कक्षा में हमेशा एक डर सा लगा रहता। अगर शिक्षिका कुछ पूछती तो जवाब जानने के बावजूद उत्तर नहीं देती।


एक बार बगल में बैठी दोस्त द्वारा उत्साहित किए जानें पर खड़ी तो हो गई, मगर चारों ओर के उत्सुक चेहरों को देखकर हाथ- पाँव काँपने लगे और मैं जवाब न दे पायी। शिक्षिका ने यह कहकर बैठ जाने को कह, ”मन लगा कर पढ़ाई किया करो”


अनेक बार ऐसा होता कि प्रश्न का उत्तर मैं अपने बगल वाली दोस्त को बता देती और वह खड़ी होकर झट से जवाब दे देती। पी.टी.मीटिंग में टिचर ने मेरी शिकायत करते हुए कहा कि मैं कक्षा में बिल्कुल एक्टिव नहीं रहती। माँ ने घर जाकर पिताजी से कहा और पिता जी की झाड़ अलग से पड़ी।


नौवीं कक्षा में गयी तो "शपला मैडम" हमारी क्लास टीचर बन गई। वह हमें अर्थशास्त्र पढ़ाती थी। जब किसी कारणवश वह कक्षा में नहीं आती थी, तो सब लड़कियों की बांछे खिल जाती। वैसे डाँटती भी वह बहुत थी। एक दिन एक लड़की को उन्होंने बिंदी और काजल लगाए देख लिया, फिर क्या था, आग-बबुला हो गई और उसे खुब खड़ी खोटी सुनाई। उसे बिंदी पोंछकर मुँह धोकर आने के लिए कहा। यह सब देखकर मेरे हाथ- पाँव से पसीने छूटते रहें। मैं बेंच के कोने में और दुबक कर बैठ गई।


फिर हमारी फस्ट टर्मिनल की परीक्षा हुई। अपने नियत समय पर "शापला मैडम" हमारे कक्षा में " पेपर " दिखाने आयी। आते साथ लड़कियों को डाँटने लगी। कहने लगी, तुम लोग कुछ नहीं पढ़ती हो, कक्षा में ध्यान नहीं देती हो, आगे क्या पढ़ोगी? शादी करके घर बैठने का इरादा है, अपने पिता का पैसा बर्बाद कर रही हो, और भी न जाने क्या- क्या कहती चली गई। सभी लड़कियाँ फेल की है, कुछ एक केवल पास मार्कस लायी है। मेरे तो जैसे खून ही जम गये थे। मैं तो पीछे की बेंच पर दीवार से सटी, सर झुकाये बैठे थी। तभी अचानक वह बोल पड़ी, "मैं एक कॉपी पढ़ने जा रही हूँ, जिसने लिखा है, खड़ी हो जाना।


"शापला मैडम " एक कॉपी निकाल कर उसमें लिखा गया प्रश्न का उत्तर पढ़ने लगी। वह एक अनुच्छेद पढ़कर चुप हो गई। कोई लड़की खड़ी नहीं हुई। सब एक दूसरे का मुँह देख रही थी।


शापला मैडम ने चिल्लाकर कहा, “किसने लिखा है यह उत्तर? खड़ी हो जाओ” फिर वह आगे पढ़ने लगी।


अचानक मुझे लगा कि ये उत्तर तो मेरे द्वारा ही लिखी गई है। मैंने जो लिखा था उसे ही तो हुबहू वह पढ़े जा रही है। मैं डरते- डरते खड़ी हो गई।


शापला मैडम ने कहा, “तुम सीमा प्रिया हो ?”


मैंने हां में सिर हिलाया।


“तो तुम खड़ी क्यों नहीं हो रही थी? तुम्हारा पेपर देखकर तो मन खुश हो गया है। कक्षा में एक तुम हो जो मेरे द्वारा पढ़ाई जाने वाली विषय -वस्तु को ठीक से समझा है। तुमने किताब से न रटकर अपनी भाषा में उत्तर दिया है। मैंने तुम लोगों को जिस तरह से लिखने के लिए कहा था, तुमने तो हुबहू वैसा ही लिखा है।“


मैडम ने हँसते हुए कहा, "तुम तो मेरी असली शिष्या निकली”


उसे दिन हम लोगों ने मैडम को पहली बार हँसते हुए देखा था।


“अर्थशास्त्र में मैंने तुम्हें पूरे सौ प्रतिशत अंक दिया है। इसी तरह मेहनत करती रहो, आगे बढ़ते जाओगी। चलो सब लड़कियाँ सीमा के लिए ताली बजाओ”


और सभी ने बेंच थपथपाकर मेरी हौसला अफजाई की। उस समय सभी लड़कियों के चेहरे पर मेरे लिए आदर का भाव था।


मेरे मुँह से निकला- "धन्यवाद मैडम "।


मैंने अपने जीवन में पहली बार खुद के लिए प्रशंसा पाया था। मैंने महसूस किया कि मेरे हाथ- पाँव में पसीना बिल्कुल नहीं है। मैं शांत थी और अत्यंत उत्साहित थी। शिक्षिका की बातों ने मेरे अंदर एक जोश पैदा कर दिया था। इसके बाद से मुझे खड़े होकर उत्तर देने में, लोगों से बातें करने में जो हिचकिचाहट थी, वह धीरे -धीरे दूर होती चली गई और सबसे बड़ी बात मैं अपने दोस्तों की नजर में "शापला मैडम " की प्यारी शिष्या बन गयी थी। 


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