दूसरी बार हुआ इश्क़
दूसरी बार हुआ इश्क़
"आशुतोष बेटा लड़की की मांग में सिंदूर लगाओ" माँ की आवाज सुन आशुतोष अपने अतीत की यादों से निकला और उसके समक्ष बैठी रजनी को बिना देखे सिंदूर से मांग भर दी। रजनी ने भी आशुतोष की तरफ एक नजर उठा कर भी नहीं देखा बस बेमन से एक अनचाहे रिश्ते में बंधने को तैयार हो गई...!!
विवाह के रीति रिवाज संपन्न हुए, और रजनी अपने ससुराल पहुंच गई...रजनी एक 35 वर्ष की वो महिला है जिसके पति ने 6 साल पहले बेटी के जन्म होने की वजह से रजनी को तलाक दे दिया था..और पिछले 6 वर्षों से वो अपने माता पिता के साथ ही रह रही थी।
घर वालो के दबाव और समाज के तानों ने रजनी की ज़िन्दगी से मुस्कुराहट जैसे छीन ही लिया था।
लेकिन बेटी राशी के भविष्य के लिए उसने माता पिता के विवाह वाले दबाव को स्वीकार कर लिया और बन गई आशुतोष की दुल्हन।
वहीं आशुतोष जो अभी सिर्फ 38 वर्ष का था, और एक सड़क दुर्घटना में दो साल पहले अपनी पत्नि को खो चुका था, उसकी 8 वर्ष की बेटी रिया ही अब जीने का एक मात्र सहारा थी उसके लिए..आशुतोष की ज़िन्दगी अपनी बेटी रिया के इर्द गिर्द ही घूम रही थी, लेकिन आशुतोष की माँ आशुतोष के दिल का एक कोना हमेशा खाली पाती थी और हर वक्त आशुतोष को फिर से जीवन की नई शुरुआत करने के लिए मनाती रहती थी, बहुत दिनों के प्रयास के बाद एक दिन वो इस काम में सफल हो गई और फिर आई आशुतोष की ज़िन्दगी में रजनी।
बेशक आशुतोष और रजनी एक दूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंध चुके थे लेकिन उनके मन एक दूसरे से बिल्कुल जुदा थे। उन्होंने नजर उठा कर अभी तक एक दूसरे को देखा भी नहीं था बातचीत की तो बात ही अलग है। दोनों ने विवाह अपने बच्चों के लिए किया था क्योंकि बच्चों को अपने माँ बाप दोनों की जरूरत थी।
आशुतोष तो अपनी पहली पत्नी से इतना प्रेम करता था कि उसके जाने के दो वर्ष बाद भी वो हर रोज उसे याद करता था और उस मनहूस दिन को कोसता था। रजनी की ज़िन्दगी में प्रेम जैसा कुछ था ही नहीं कभी, इसलिए उसे सिर्फ अपनी बेटी का ही प्रेम हर वक्त नजर आता था, और उसी की ख़ुशियों की तलाश में वो खुद को आशुतोष की दूसरी पत्नी बनाने को तैयार है।
दोनों के बीच एक चीज बहुत अच्छी थी कि दोनों ने जिस वजह से एक दूसरे से विवाह किया था वो जिम्मेदारी वो बखूबी निभा रहे थे, एक तरफ जहां रजनी रिया और राशी को सुबह स्कूल भेजने से लेकर उन्हें घर ले आना, दोनों को एक साथ अपने हाथ से खाना खिलाना, और एक बराबर प्रेम करने की जिम्मेदारी निभा रही थी, वहीं दूसरी तरफ आशुतोष भी अपने पिता के धर्म को बखूबी समझ रहा था...उसके लिए भी रिया और राशी एक जैसी ही थी। दोनों के लिए एक जैसी चीजें लाना, और एक जैसा व्यवहार करना आशुतोष और रजनी के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका था, दोनों ने बेटियों में कभी कोई पछपात नहीं किए बल्कि अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी में एक दूसरे के साथ जरूर पछपात कर रहे थे।
दिन बीतते गए लेकिन आशुतोष रजनी के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया, दोनों ने बच्चों की देखभाल ही अपनी ज़िन्दगी का जरिया बना लिया...
आशुतोष जब भी रजनी को रिया के प्रति माँ की जिम्मेदारी निभाते देखता उसे अपनी पहली पत्नी की बहुत याद आती थी, वो खुद को आंसूओं में भिगोए बिना नहीं रह पाता था, कभी कभी आशुतोष को रजनी में रिया की माँ की छवि दिखती थी, लेकिन दूसरे ही पल वो अपने दिमाग को उस तरफ जाने से पहले ही रोक लेता था।
धीरे धीरे एक साल होने को आ गया लेकिन आशुतोष और रजनी ने एक दूसरे से जरूरी कामों के बजाय अन्य कोई बात नहीं की, ऐसा नहीं था कि दोनों एक दूसरे से नफ़रत करते थे लेकिन कभी बात करने की उन्होंने जरूरत ही नहीं समझी। एक दूसरे के लिए दोनों के मन में बहुत सम्मान था, एक दूसरे की जरूरतों का भी वो हमेशा ख्याल रखते थे, रजनी ऐसा कुछ नहीं करती थी जिससे आशुतोष को तकलीफ़ हो, लेकिन दोनों के मन में एक दूसरे के लिए प्रेम,अपनत्व भी पनप रहा था इस बात से दोनों अंजान थे।
एक दिन रिया के स्कूल से फोन आया कि रिया खेलते खेलते गिर गई और उसके सिर में चोट लग गई है...रजनी बिना पांव में चप्पल डाले निकल गई रिया के स्कूल...और तुरन्त रिया को लेकर अस्पताल रवाना हुई।
आशुतोष भी कुछ देर में अस्पताल पहुंच गया लेकिन रिया की ऐसी हालत देख कर वो कुछ देर के लिए सदमे में चला गया.. उसे अपनी पत्नी का चेहरा याद आ रहा था, ऐसे ही अस्पताल में वो भी उस दिन पड़ी थी, और कैसे एक दिन वो सबको छोड़ कर चली गई। आशुतोष इन्हीं सारे खयालों में खोया हुआ था और लगातार आंसूओं से उसकी आंखे भीगती जा रही थी।
रजनी से आशुतोष की ये हालत देखी नहीं जा रही थी, और उसने पीछे से जाकर आशुतोष के कंधे पर हाथ रखा, आशुतोष ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा कि रजनी है वो सीधा उसके गले से लग कर रोने लगा।
रजनी मैं रिया को खोना नहीं चाहता, उसकी माँ को एक बार खो चुका हूं, उसकी निशानी के नाम पर मेरे पास सिर्फ उसकी यादें और मेरी बेटी रिया है...मैं नहीं रह सकता इसके बिना, तुम कुछ भी करके रिया को ठीक करवा दो, तुम तो रिया को अपनी बेटी जैसे प्यार करती हो, मुझे मेरी रिया चाहिए, मुझे मेरी रिया चाहिए....और कहते कहते रोने लगा।
तभी डॉक्टर आए और उन्होंने बताया कि रिया अब ठीक है आप लोग उससे मिल सकते हैं, ज़रा सी चोट थी जिस वजह से वो बेहोश हो गई थी।
आशुतोष ने खुशी खुशी में रजनी को अपनी बाहों में भर लिया और कहने लगा, मुझे माफ़ कर दो रजनी मैंने तुम्हें पत्नी का दर्जा नहीं दिया, तुम सिर्फ रिया की माँ बनकर ही रह गई..आज मुझे एहसास हुआ रिश्ते कितना मायने रखते हैं, जिसे मैंने खो दिया है उसे मैं दोबारा हासिल तो नहीं कर सकता लेकिन जो अभी मेरे पास है उसे मैं नहीं खोना चाहता...तुम जिस तरह रिया और राशी की माँ बनकर मेरे घर में आई हो, उसी तरह मेरी पत्नी बनकर भी आईं हो..और हम इस सच से मुंह नहीं मोड़ सकते...तुम रिया, राशी मेरी जिम्मेदारी कल भी थे और आने वाले जीवन में भी रहोगे...मैं अब किसी को खोना नहीं चाहता, सबके साथ ज़िन्दगी आनंदपूर्वक बिताना चाहता हूं और तुम्हें अपनी पत्नि के रूप में अपनाना चाहता हूं, मुझे तुम्हारे प्रेम पूर्ण व्यवहार ने दोबारा तुमसे इश्क करने पर मजबूर कर दिया और अब रजनी ने भी अपने अंदर उमड़ते जज्बात और अपनत्व को आशुतोष पर उड़ेल दिया और दोबारा इश्क़ कर बैठी..!!