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Nikita Vishnoi

Others

5.0  

Nikita Vishnoi

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तक़रार से प्यार

तक़रार से प्यार

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नदी के पास जैसे ही शेरु पहुँचा पानी की उठती तरंगों से खेलने लगा ।  मस्ती देख तनिष्का का हृदय भी द्रवित हो गया जो कल तक उसे बेइंतेहा नफरत करती थी ,उसकी अजीब से क्रीड़ा कलाप को देखकर तनिष्का की नज़र एकटक हो उसे देखने लगती और उसे शेरु (विलायती कुत्ता)का यूं मस्ती करते देख अपने बचपन मे खुद को ढूंढने जैसा लगने लगता ।पर सवाल ये है कि तनिष्का शेरु से नफरत क्यों करती थी , इसके लिए कहानी के रोचक सिरे से आपको जुड़ना होगा । 


शेरु बहुत ही आलीशान बंगले में रहता था । उसे AC में रहने की आदत थी ,सुबह शाम बागों में टहलने की आदत थी ,तरह तरह के नॉनवेज खाने की आदत थी और एक एकांत जगह का राजा था शेरु (पहले उसका नाम डेनवर था) । डेनवर अपने ख़्वाबगाह में आराम फरमाता और रविश अंकल की तो वो जान था ।  फिर उन्होंने तनिष्का के यहाँ डेनवर को क्यों छोड़ दिया ? प्रश्नों का समुच्चय एक साथ था । 


तनिष्का के पापा सोहेल और रविश दोनों में बचपन की मित्रता थी ।  रबिश डेनवर से बहुत प्यार करता था, उसकी हमेशा परवाह करता पर रबिश की तबियत बहुत खराब रहने लगी । उन्हें अपने इलाज के लिए सिंगापुर जाना था पर उन्हें फिक्र डेनवर की थी कि इसे कहा छोड़े । बहुत सोचने पर उन्हें अपने दोस्त सोहेल की याद आयी कि सोहेल डेनवर का ध्यान रख सकता है । एक हफ्ते की तो बात है फिर तो ,वो आ ही जायेंगे सिंगापुर से ।उन्होंने आव देखा न ताव, तुरन्त सोहेल को फ़ोन लगा दिया और उसे डेनवर को अपने घर ले जाने की बात कह दी । अब सोहेल चिंतित था कि वो डेनवर तो बहुत ही आराम में रहने वाला कुत्ता है उसे हमारी तंग गलियों से गुजरता हुआ घर क्या पसन्द आएगा। मस्तिष्क पर चिंता की लकीरें उभर चुकी थी ।सोहेल सुबह ही अपने दोस्त रविश के यहाँ गया । रविश बहुत खुश हुआ और अपने केंसर के इलाज के लिए सिंगापुर की एक हफ्ते की यात्रा वाली बात भी बतादी सोहेल ने दुख प्रकट किया और रविश को जल्दी ठीक होने की आश्वस्तता भी दी ।सोहेल डेनवर को अपने घर ले जा रहा था ।बड़े नॉटंकी मिज़ाज में डेनवर घर तक पहुँचा ।


घर पहुँचते ही डेनवर को लगा किस जेल का कैदी बन गया । वो बाहर जाने का रास्ता भी एक दरवाजे ने छिपा लिया था ,दो कमरों का यह मकान जहाँ एक ही रोशनदान थी ।उस पर सटाकर तनिष्का ने अपनी पढ़ाई वाली मेज रखदी ।डेनवर गुस्से और आक्रोशित अंदाज़ में सबको घूर रहा था । एक तो गर्मी के दिन ,ऊपर से इतना तंग घर ।पंखा भी इतनी मन्द गति से चल रहा था मानो जबरन उसे चलने के लिए विवश कर रखा हो ।डेनवर गर्मी से परेशान हो गया था । एक तो विलायती कुत्ता और हमेशा Ac में ही रहने का आदी था ।उसे यहाँ ज़रा भी अच्छा नहीं  लग रहा था।


सोहेल ने तनिष्का से कहा, " इसका ध्यान रखना, मैं अब काम पर जा रहा हूं" । तनिष्का ने स्वीकृति दे दी पर उसे तो ये विलायती कुत्ता ज़रा भी पसन्द नहीं था । इतना खूंखार तो इसका मुँह है, ऊपर से पूरा का पूरा जंगली, काले और भूरे रंग के सघन बाल । नाम भी कैसा डेनवर । इससे अच्छा तो शेरु नाम है । पापा लाये तो भी इस छोटे गेंडे को उठाकर, इतना भारी है ,चलेगा तो फर्श को नीचे धंसा देगा! मन ही मन तनिष्का डेनवर पर गुस्सा दिखा रही थी । शाम चार बजे जब तनिष्का की माँ आयी जो कि एक प्राइवेट छोटे विद्यालय में अध्यापिका थी। "ये है डेनवर", कुछ चौकते हुए तनिष्का की माँ बोली। ।"हां, ये ही है डेनवर, फ़ैनवर मोटा गेंडा जब से आया है बस मुझे घूरा जा रहा है । कोई मैनर्स नही है , इस गवार में" , गुस्से में तमतमाती हुई तनिष्का बोली ।


माँ पहले तो हँसी फिर बोली कि देखो ये हमारे यहाँ सिर्फ एक हफ्ता ही रुकेगा इससे दोस्ती करलो और इसके साथ खेलो । तुम्हारा भी मन लगेगा और तुम्हारी छुट्टियां भी कल से बखूबी जाएगी ।जैसे- तैसे एक दिन कट गया ,अगले दिन जब दिन चढ़ा और सूरज भी अपने रौद्र रूप में आया डेनवर की जान निकलने लगी ।उसे कभी इतनी गर्मी महसूस नहीं  हुई जितनी कि आज हो रही थी ।उसकी इस हालत से घर वाले भी त्रस्त थे क्योंकि डेनवर बार-बार दरवाजे से अंदर ,अंदर से बाहर जा रहा था । उसके ऊपर जैसे सूर्य का प्रकोप चढ़ गया हो बेतहाशा गर्मी से व्याकुल बेचारा डेनवर करता भी तो क्या । गुसलखाने की टँकी में जाकर बैठ गया जिसमें कुछ पानी का स्तर था ।


दिन भर बैठा रहा अब तनिष्का को भी कुछ हँसी आ रही थी कि ये गेंडा आज अच्छा परेशान हुआ । उसने गुसलखाने में झांककर देखा तो डेनवर कुछ राहत की सांस लिए तनिष्का को घूर रहा था। तनिष्का भी भोह चढ़ाते हुए बोली , "मोटेराम मजे आ रहे है न," और जोर से हँस पड़ी ।डेनवर को क्या फर्क पड़ना था वो ज्यो का त्यों बैठा रहा ।आज चौथा दिन था तनिष्का का स्वभाव कुछ बदला सा लग रहा था ।आज 6 बजे ही जाग गयी और डेनवर को लेकर सेर कराने जा पहुँची ।


एक तालाब के पास। डेनवर भी इठलाता हुआ अपनी मस्ती के आगोश में बढ़ रहा था और जैसे ही डेनवर ने तालाब की ओर देखा वो तनिष्का से छूटकर भागा और तालाब में एक गहरी छलांग मार दी । तनिष्का भी एकटक हो डेनवर को देख रही थी और डेनवर पानी की तरंगों के संग खेलता हुआ मस्ती के उच्चतम स्तर का आनंद ले रहा था । उसे देख तनिष्का का हृदय भी करुणा के सागर से सरोबार हो गया ।वो डेनवर से कहने लगी ...शेरु मजे आ रहे है न और जोर से तालिया बजाने लगी । डेनवर दौड़ कर तनिष्का के पास आया और उसके बेग को लेकर इधर-उधर आखेट करने लगा । तनिष्का अपनी नफरत भूल डेनवर के पीछे उसे पकड़ने के लिए दौड़ रही थी । बीती रात कमल दल फूल कर सुबह की इस सुकूनमय बेला में दो प्रकृतिप्रेमियों के प्यार का एक खूबसूरत किस्सा लिख रहे थे । दोनों की नफरत भी आहिस्ता प्यार में बदलने लगी । अब डेनवर शेरु बन चुका था जो हर परिस्थिति में ढल चुका था ,वो रोटी भी खाने लगा ।ज़मीन पर सोने लगा, मन्द गति वाले पंखे में भी नींद का सफर करने लगा और तनिष्का से उसकी दोस्ती का मत पूछो ।अब दोनों एक दूसरे बिना एक पल भी दूर नही रहते थे । दिन-भर उछल कूद मस्ती कर शेरु और तनिष्का एक दूसरे के बहुत अजीज बन चुके थे !अचानक शेरु के आने के बाद तनिष्का का स्वभाव भी बहुत बदल चुका था । अब वो दिन आ गया था जब रविश अपने डेनवर को लेने सोहेल के यहाँ आया पर तनिष्का के साथ डेनवर की ऐसी दोस्ती को वो देखकर हृदय से बहुत गदगद हो उठा ।उसने आज से ज्यादा खुश कभी डेनवर को नहीं देखा था उन्होंने अब डेनवर को हमेशा के लिए तनिष्का को सौप दिया था ।  आशा के कीर्तिमान को रचने के लिए उसे ज्ञात हो गया था कि एक नई सुबह डेनवर की जिंदगी में उजाले के प्रवाह को स्थापित करने आई है जिसमे रविश खलल नही पैदा करना चाहता था ।



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