मनमोहक जारवा
मनमोहक जारवा
उस समय मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी।हमारे स्कूल में गरमी छुट्टी के बाद एक नाटक प्रतियोगिता का आयोजन होने वाला था ।मैं भी उसमें शामिल होने वाली थी।
स्कूल छूट्टी होने के बाद मैंने जल्दी ही अपना सारा होमवर्क खत्म कर लिया ।कुछ दोस्तों के साथ मिलकर नाटक की तैयारी में व्यस्त हो गई । मगर कुछ अच्छा सा कनसेप्ट मिल ही नहीं रहा था ।मैं घर बैठे- बैठे उकता गई थी ।तभी माँ ने अचानक अंडमान निकोबर दीप जाने का कार्यक्रम बनाया ।मैं खुशी से झूम उठी। "अंडमान " जो अपने नैसर्गिक सौन्दर्य, मनमोहक समुद्र तट के लिए मशहूर है ,में जाने के नाम से ऐसा लगा मानो मुझे खुशियों का खजाना मिल गया है ।
हमने नियत समय पर दिल्ली से "विस्तारा एयरलाइंस" की फ्लाइट पकड़ कर पोर्ट ब्लेयर की उड़ान भरी ।हमलोग आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर पहुँचे।
पहले से बुकिंग की हुई होटल में गये और वहां से तरो ताजा होकर सागर तट की ओर निकल पड़े ।
साफ सुथरा सागर तट और तटों से टकराती सागर की लहरों की सुंदरता देखकर मन मयूर नाच उठा ।
हम लोग वहां खुब घूमे ।वहां की मशहूर सेल्यूलर जेल में गये, जहां स्वाधीनता संग्राम में
जान गँवाने वालों की दास्तान दर्ज है ।
हम लोगों ने खूब मस्ती की ओर ढेर सारे सेल्फी भी लिए ।
वहां से लौटने के एक दिन पहले हमलोग पोर्ट ब्लेयर से बरतांग की ओर जा रहे थे।
हम लोग वहां के टूर एजेंट के साथ अंडमान ट्र्कं रोड (ए टी आर)होते हुए दक्षिण की ओर जा रहे थे ।पुलिस पोस्ट के पास चेकिंग के बाद हमें आगे बढ़ने दिया गया ।
एजेंट ने बताया कि दरअसल वह क्षेत्र सरकार द्वारा संरक्षित "जारवा आदिवासी " का क्षेत्र है ।
सरकार उन्हें अपनी तरह से जीने का अधिकार देता है ।पुलिस उनके मामलों में दखल नहीं दे सकती हैं ।
ए टी आर से जाते समय सभी गाड़ियाँ लगातार आगे बढ़ती जा रही थी ,किसी को रुकने की इजाजत नहीं थी।
गाईड ने बताया " जारवा" काफी आक्रामक भी
होते है।
अचानक जोरदार बारिश शुरू हो गई ।गाड़ी आगे बढ़ते जा रही थी, रास्ते के दोनों ओर घना जंगल था। अचानक गाड़ी एक सुअर के सामने आ जाने पर एक धक्का में रूक
गई ।मैंने देखा एक तीर सुअर के पैरों में फंसी हुई थी । सुअर आवाज निकलते हुए जंगल में गुम हो गया ।
अब गाड़ी स्टार्ट होने का नाम न ले रही थी ।
हमें गाड़ी से बाहर निकलना पड़ा।
मन ही मन हमलोग डर रहें थे ।
अचानक मेरी नजर पेड़ो के झुंड के अंदर ज॓गल में पड़ीं, जहां कुछ शोर भी सुनाई दे रहा था
बिलकुल काले रंग के आदिवासी हाथों में हाथ डाले नाच रहे थे । मैंने एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि मेरे सर पर मेरी माँ की एक चपत पड़ीं
गाइड ने मुझे सतर्क किया "बेबी फोटो मत लेना "।
अचानक नाचते गाते वह " जावरा आदिवासी " जंगलों में गायब हो गये ।।
तब तक पुलिस की गाड़ी भी वहां पहुंच चुकी थी। पुलिस ने हमें उनकी जीप से रास्ता पार करा दिया ।
अगले दिन सुबह हमलोग विमान से वापस दिल्ली लौट आए ।
मेरी गरमी छुट्टी भी अब समाप्त होने वाली थी ,और मुझे नाटक का कनसेप्ट भी मिल गया था ।मैंने नाटक का शीर्षक रखा "मनमोहक जारवा"।।मेरी ये नाटक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आई थी ।।