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ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

Drama

1.8  

ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

Drama

पेंसिल की आत्मकथा

पेंसिल की आत्मकथा

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आप को आज मैं अपने जन्म की आत्मकथा सुनाती हूँ। यह बहुत पुरानी बात है। उस समय रोमन साम्राज्य में रहने वाले लोग ब्रश को स्याही में डूबो कर लिखते थे। वहां के लोग ब्रश को पेंसिल कहते थे। यह मेरा पुराना नाम था। जो उस वक्त लिखने के काम आने वाला महत्वपूर्ण साधन था।


उस पेंसिल से आज की पेंसिल शब्द का मेरा सफ़र बहुत लम्बा है। इस नए रूपरंग की पेंसिल का निर्माण बहुत बाद में हुआ है। मगर, मेरा रूप और स्वरूप शुरुवात में बहुत अलग था। कालांतर में इस का रूप बदलता रहा।


उस समय रोमन लोग हंस के पंख से लिखने का काम करते थे। इस लिखने वाले पंख को ही पेंसिल कहते थे। मगर, मेरा यह रूप जल्दी ही बदल गया। इस रूप के बदलने के पीछे एक दिलचस्प घटना हुई थी। यह घटना सोलहवी शताब्दी में इंग्लेंड में घटी थी।


इंग्लैंड के कंबरलैंड के पास बोरोडेल नामक स्थान पर एक घना वृक्ष लगा हुआ था। उस समय वहां पर एक जोरदार तूफान आया। उस तूफान में वह बड़ा सा वृक्ष जमिन्दोज़ हो गया था। उस वृक्ष को जड़े बहुत गहरी थी। उस के नीचे कालाकाला पदार्थ लगा हुआ था। सभी जड़े इसी पदार्थ से सनी हुई थी। जिस के रगड़ने से भेड़ों के शरीर पर कालाकाला निशान होने लगे थे।


गडरियों के लिए यह एक नया पदार्थ था। उन्हों ने उस पदार्थ को ले कर भेड़ों पर निशान लगाना शुरू कर दिया। यह सीसा था। जो ग्रेफाइड का शुद्ध रूप होता है। जिस का यह नया प्रयोग वहां के लोग सीख गए थे।


धीरे धीरे यह प्रचलन गड़रिया में चल निकला। जब भी गडरियों को भेड़ों पर कोई निशान लगाना होता था, वे उसे पदार्थ को उठा लेते थे। इस तरह ग्रेफाइड से लिखने और निशान लगाने की शुरूआत हो हुई। जो धीरे धीरे शहर पहुंच गई। वहां के व्यापारियों ने इस पदार्थ का उपयोग अपने बक्से और माल पर निशान लगाने के लिए करना शुरू कर दिया।


इस के उपयोग करने से शुरूशुरू में लोगों के हाथ काले हो जाते थे। इस के लिए उन्हों ने कई उपाय किए। कुछ लोग लकड़ी और पत्ती के अदंर रख कर इस का उपयेाग करते थे। इस तरह विधिवत रूप से पेंसिल का उपयोग इसी समय आरंभ हुआ था।


इस चीज़ को उस वक्त मार्किंग स्टोन यानी निशान लगाने वाले पत्थर के रूप में जाना जाता था। क्यों कि इस का उपयोग निशान लगाने में होता था। यही मेरा पहला नाम मार्किंग स्टोन पड़ा।


कालांतर में यानी 18 वीं शताब्दी में इस वृक्ष के नीचे से निकली खदान पर किंग जार्ज द्वितीय ने अपना कब्जा जमा लिया था। इस तरह ग्रेफाइट की खदान पर विधिवत राजा का अधिकार हो गया। यहां से राजा ने इस का विधिवत उत्पादन शुरू कर दिया। तब मुझे देवादार के वृक्ष की लकड़ी के अंदर रख कर बेचा जाता था। इस से लोगों के हाथ काले नहीं होते थे।


धीरे धीरे मेरे रूप में बदलता गया। मैं ने कई यात्राएं की।


आज मैं 300 से अधिक रूप में मिलती हूँ। मेरा उपयोग मरीज को चीरा लगाने के स्थान को मार्क करने के लिए भी किया जाता है। मैं पेन और कई तरह के रूपरंग में मिलती हूँ।


यह मेरे जन्म के शुरुआत की कहानी है। यदि यह कहानी आप को अच्छी लगी हो तो दूसरे को सुनाना।


इतना कह कर पेंसिल चुप हो गई।


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