कुमकुम
कुमकुम
हमारे यहाँ काम करने वाली बाई का नाम कुमकुम था।
दो बेटियों की माँ, काली कलूटी हर समय ढीली ढाली आती, जैसे लगता कि बस सो कर आ रही है। आते ही रोना शुरु कर देती कि हमारा पति बहुत तंग कर रहा, बहुत मार पीट करता है, बहुत परेशान रहते हैं, हम भी दुखी हो जाते कि वाकई ऐसा ही होगा।
उसके पति को बुलाकर डॉँटते-फटकारते पर वही हालत रहती। फिर चार दिन गायब हो जाती, जब पूछते तो पता चलता की तबीयत खराब है। हमने कई बार उसको चोरी करते पकड़ा, समझाया-धमकाया पर कोई असर नहीं हुआ, ना होना था।
उसी दौरान एक जज साहब की माँ के यहॉ भी काम करती थी। जहाँ इसको रहने की जगह भी मिली थी। बूढ़ी माता जी की देखरेख करना तथा देखभाल करना पर आदत खराब थी जो नहीं सुधरी ना सुधारना था, हद तो तब हो गयी जब इसने माताजी का कैश भी चुरा लिया। रातो रात पूरा परिवार भाग गया। भरोसे का इतना बड़ा खून,अरे जिसके तुम रहना खाना, सब कुछ दिया उसके साथ ही ऐसा, आजकल कहाँ है पता नहीं, पर उसने यह सीखाया कि काम करने वालों पर अधिक भरोसा करना ठीक नहीं।