माँ को पत्र
माँ को पत्र
गुड्डी का मन आज बहुत उदास था ,रह रह कर मायके वालों की याद उसके मन को सता रही थी ,माँ को देखने उसका मन बैचेन हो रहा था ,वह सोच रही थी कि क्या शादी के बाद लड़की इतनी पराई हो जाती है या उसकी ससुराल के प्रति जवाबदारी इतनी बढ़ जाती है कि धीरे धीरे उसका स्वयं मायके जाना कम होता जाता है ,यह सब सोचे उसने कागज कलम उठा माँ को पत्र लिखना शुरू किया जिसमें उसके मन के उद्गार आप ही आप कलमबद्ध होते गए ।
मेरी प्यारी माँ,
बहुत बहुत प्यार तुम्हें ,
तुमने विदा कर ससुराल भेजा मुझे, तुम्हारे तो कर्तव्य की इतिश्री हो गई ,मुझे विदा कर ,पर मेरे कर्तव्यों की शुरुआत हो गई । मैं चंचल चपल हिरनी सी कुलाचें भरती थी ,वहाँ मायके में , स्वछंद ।तुम्हारे बार बार समझाने पर भी नहीं रुकती ,बेरोकटोक कहीं भी जाना आना करतीं, समझ ही नहीं पाती मैं कि कल को मुझे ससुराल जाना है और एक बहू के सारे कर्तव्य निभाने हैं । आज ससुराल में समझ आ रहा कि अब मैं एक बेटी ही नही जवाबदार बहू बन गई हूं , सुबह से सबके पीछे चकरघिन्नी की तरह घूमती रहती हूं ,सबकी फरमाइश पूरी करते करते कभी कभी अपने खाने का भी ध्यान नही रहता , आज आईने के सामने खड़ी हुई तो ऐसा लगा मैं तुम्हारी परछाईं बन गई हूं ,तुम भी तो ऐसे ही दिन भर भागती- दौड़ती थीं सबके पीछे ।और हमे ध्यान भी नही रहता कि तुम भी कितनी थक जाती होगी घर के कामों में , हम भाई बहन बस अपनी ही धुन में रहते ।
माँ आज मैं तुम्हे याद कर रही हूं तो आंखों से आँसू रुकने का नाम नही ले रहे , जाने किस मिट्टी की बनी थी तुम बस मुस्कराते रहतीं , कितना भी मुश्किल काम हो , या पिताजी का चिल्लाना कैसे सह जाती थी । हम तो फिर भी रो गा लेते हैं दुख में, पर तुम्हारी सहन शीलता का जवाब नही था , यही शायद "माँ" शब्द की परिभाषा है ।माँ मुझे तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे से ताकत मिलती है , समझ आ रहा है जीवन चलाने के लिए सहनशीलता , कर्तव्यनिष्ठा कितनी जरूरी है , जब मुझसे मेरे घरवाले कहते हैं ,ये बिल्कुल अपनी माँ की तरह है ,तो मेरी खुशी का ठिकाना नही रहता कि माँ मैं तुम्हारी तरह बन तो पाई , माँ तुम अपना प्रेम स्नेह और आशिर्वाद हमेशा मुझ पर यूँ ही बनाये रखना , कभी तुम मुझे पराई ना करना माँ ,दूर हूँ तुझसे पर दिल से हमेशा तेरे पास हूँ ।
तुम्हारी अपनी
प्यारी बेटी गुड्डी
इधर पत्र समाप्त हुआ उधर उसकी बेटी स्कूल से आवाज लगाने लगी -"मम्मी मम्मी कहाँ हो ।"वह मुस्कुरा कर उठी उसके जीवन का नया अध्याय शुरू हो चुका है अब यह घर मेरा है और यहाँ के सब लोगों की जवाबदारी भी मेरी है ,उसके सामने माँ का सारा जीवन चलचित्र की तरह घूम गया ,अब बस मुझे भी उन्हीं की प्रेरणा लेकर अपना जीवन खूब ख़ुशनुमा बनाना है ,कहीं पराई नही हूँ मैं ,कल भी उनकी बेटी थी और आज भी ।
"मम्मी भूख लगी है "
"चल खाना दूँ तुझे "
कहकर वह रसोई की तरफ बढ़ गई ।