एक मीठी सी गुहार
एक मीठी सी गुहार
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बात इतनी सी है कि तुम ये समझ जाया करो,
शाम को दफ़्तर से रोज़ घर समय पर आया करो
जो भी हो काम की उलझन और परेशानियाँ
वो अपनी मेज़ की दराज़ में ही छोड़ कर आया करो
और जैसे ही रखो पाँव घर की दहलीज़ पर
देख कर मुझ को तुम प्यार से मुस्कुराया करो
दो चार पैसे अगर कम हों खाते में तो कोई बात नहीं
शर्ट की जेब में थोड़ी ख़ुशियों को भर के लाया करो
चाय की प्याली में शक्कर बातों की घुल जाया करे
दिन भर की थकान तुम चुस्कियाँ में मिटाया करो
क्यूँ तुम ही ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबे जाते हो,
बाँट के हर बोझ, कुछ मैं निभाऊँ, कुछ तुम निभाया करो
है मोहब्बत तुम को मुझसे, जानती तो मैं भी हूँ,
पर यूँ ही कभी किसी बहाने से प्यार को जताया करो..