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तसल्ली

तसल्ली

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कुछ अलसायी सी शामें फिर से दस्तक दे रही हैं
मैंने दरवाज़े  पर हुई वो धीमी सी आहट सुन ली है
होंगी जरूर वही पुरानी तुमसे लिपटी यादें
ये सोच कर मैं अंदर कहीं छुप गया हूँ
आज फिर धड़कन तेज़ होने लगी है
सोचता हूँ तुम आओ कभी और देखो
मेरे घर की पुरानी  दीवारें
जिनमे तुम्हारी अनगिनत तस्वीरें हैं
वो कोने में लगाया तुलसी का पौधा
अब भी तुम्हारे हाथ से पानी मिलने के इंतज़ार में है
और अमरुद की डाली पर लटका वो टूटा सा झूला
मानो नाराज़ है अब तुम्हे ना पा कर
घर के आँगन पर अब धुप खिलती ही कहाँ है
वो रंग वो चमक न घर में है और न मेरे चेहरे पर
हाँ ज़ेहन में कुछ निशाँ हैं तुम्हारे चले जाने के
और एक उम्मीद है इन यादों के तुम्हारे लौट आने की
साथ ही है झूठी तसल्ली की तुम अब भी मेरे हो!


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