पर्दा
पर्दा
कितने पर्दों में मिलते हो तुम
फिर भी तुमसे पर्दा कोई नहीं,
कितने किस्से सुनाती हूँ तुम्हे
फिर भी दिल की बात कोई नहीं,
कितनी राज़दारी है तुमसे
फिर भी तुमसे राज़ कोई नहीं,
कितने मुस्कान खिले होंठो पे
फिर भी आसूँ न कोई छिपे,
कितने बार छूआ है तुमको
फिर भी हाथ न कभी धरे !!