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-"आवारा मसीहा"-

-"आवारा मसीहा"-

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-"आवारा मसीहा"-

(भारतीय लोकतंत्र को समर्पित एक भावान्जलि)

दिल्ली : भारत का दिल है
यही तो मुश्क़िल हो......
कि;नहीं धड़कती दिलों में 
धड़कता है दिल : दिल्ली में .
राजनीति का मर्यादा--हीन सागर
यहाँ ; ठाठे मारकर दहाड़ता है
किनारे पर पड़ा; हर बेकार पत्थर 
आती--जाती लहर पर सवार हो
: गहराई नापने की ढींगें बघारता है.

जिस लोकतंत्र को हमने;सदैव संसदीय बहसों में 
सजे--सँवरे और मुस्कुराते देखा था
वही आज "जनपथ के फुटपाथ "पर
दीन--हीन ; सहमा--सहमा , अधनंगा--सा बैठा था.

हमें हैरत हुई ! ------------------------------
पूछ बैठे ----------- "यहाँ ? इस हाल मेंं ?? "
जाने क्या था ? -------- इस सवाल में ....
कि; वह फूट--फूटकर रो पड़ा.........

मैं ;सकपकाया -------- सीधा उसे घर ले आया .

घर आकर "लोकतंत्र " कुछ तरो--ताज़ा नज़र आया
मुझे लगा ; मुझे देखकर हौले-------हौले मुस्कुराया
आदत से मजबूर;हमने, वही शाश्वत् प्रश्न दोहराया
--- "या इलाही ! ये माज़रा क्या है ?"
"लोकतंत्र "; बेहद मायूस स्वरों में फुसफुसाया
---- "अनुपम भाई ! पंचवर्षीय दवा का असर है".
---"भाई मेरे; आजादी के बाद से ही ढिंढौंरा पीट रहे हैं 
संसद से विधानसभा और अब तो ग्रामपंचायतों तक
मुझे ; बे-- रहमी से घसीट रहे हैं ".
-- "देखो न ! मेरी क्या दुर्दशा कर दी............. "

--" आजकल तो लोग ; मेरे सीने पर नंगा नाचते हैं ,
मेरी बेटी " व्यवस्था " को रखैल बना रखा है
और बेटे " कानून " की कमजोरियाँ भाँपकर
मुझे ही कदम--दर--कदम .......... फाँसते हैं ".
--"मेरा बाप "अनुशासन "; मुझे अनाथ छोड़कर 
आपातकाल के साथ ही वनवास चला गया
अरे ! इन्होंने तो मेरी पत्नी"देशभक्ति "को भी नहीं छोड़ा 
न जाने; किस "जनसेवा" के साथ , उसका नाता जोड़ा 
और ; " हर थाने की दीवार पर टाँग दिया".....

--"जब भी कोई विदेशी मेहमान आता है
मुझे बड़े जतन से सजाया--सँवारा जाता है
सस्ती काकटेल पार्टियों में ----------------------
महँगी शराब से नहलाया जाता है
मेरी "भूखी भारतमाता " के; पिचके पेट पर
विकास का सुनहरा नक्शा बनाया जाता है".
---"मगर; उसके जाते ही सरकार सब भूल जाती है
मुझे देखते ही;--------- उसकी भृकुटी बल खाती है".
--"मैं ;यूँ ही भटकता रहता हूँ -----------------------------
हर गली--चौराहे पर; लावारिस खड़े "बापू " से
अपनी व्यथा कहता हूँ ".

हे ; बापू !
तूने ये कैसी आजादी दिलाई ?
अहिंसा और न्याय की विरासत पर
स्वार्थ्य और समझौतों ने छुरी चलाई".

सत्ता : अब मौक़ापरस्तों का हथियार है
रामराज्य है : सपना ---- मतदाता ; लाचार है.

----- " मैं ; अपने ही देश में बेगाना हो गया हूँ 
क़द से बडी परछाईयों में खो गया हूँ ".

--"मुझे पता है ; मेरी बहन "जनता " मुझसे बहुत ख़फा है !
कि; .....................मैं उसके पास कभी क्यूँ नहीं पहुँचता?
सच मानों तो; इच्छा तो मेरी भी बहुत होती है
पर;पत्नी --बच्चों के बिना अकेले जाने की कैसे सोचता ?"

----- " अनुपम भाई !
तुम तो व्यंग्यकार हो ....................
आदत से लाचार हो .....................
हमें भी मुद्दा बना दो...............
जाओ; जा कर मेरी बहन जनता को बता दो
कि; तुम्हारा भाई लोकतंत्र ,दर--दर भटक रहा है
कानून और व्यवस्था की खोज में 
देशभक्ति के बिना-----------------------
राजघाट पर सुबह--शाम;अपना सिर पटक रहा है".

----- "साजिश और शिकस्त के इस खेल में 
दुनिया की सबसे बडी लोकतांत्रिक जेल में 
जनता चाहे ------------------- तो; मुझे खोजे !
या; अपनी बारी सोचे -------------------------- !!"
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