जब मुश्किलें झांक रही हो
जब मुश्किलें झांक रही हो
जब मुश्किलें झांक रही हो
दामन से बेदर्द संसार को ,
और तुम्हे भी पता ना चले
क्या बचा अब इंतज़ार को,
तुम पोंछ के आंसू है देना
भुला देना जालिम संसार को।
कर के विरह अलाप तुम
पहन अग्नि की इस राखा को,
देख सूरज के ताप को जलना
छाव से बचाकर आप को,
छोड़ देना आराम का जीवन
सह लेना मिले हर श्राप को।
कर्म का मर्म जान लेना तुम
छोड़ सारे भोग विलाश को,
सिद्धियां प्राप्त करने में लगना
और मिटा देना हर संताप को,