अंतर्द्वंद
अंतर्द्वंद
यह कैसी आकृति है,
मेरी ओर क्यूँ आती हो ?
क्या यह मेरा भय है,
या सच में कोई रूह हो ?
क्या हमारा किसी जन्म का,
है तुमसे कोई नाता ?
क्या तुम्हें कभी जाने अनजाने,
था मैं तुमको रोज़ सताता ?
ऐसा लगता है तुम मुझको,
ख़ुद में आज समा लोगी।
पुराने ज़ख़्मों के लिए,
अब क्षमा नहीं कर पाओगी।