खुद से प्यार करो
खुद से प्यार करो
अक्सर हम
प्यार के लिए भटकते हैं
यहां वहां,
कभी किसी शख्शियत के पीछे,
कभी कुछ पाने तो
कभी हरदम पैसों के पीछे,
इस भागम भाग में
हम भूल जाते हैं खुद को,
अपने अस्तित्व को,
जिसे पंगुं बना कर
सिर्फ दौड़ाते हैं
छद्म सुखों के पीछे,
जिन्हें पाने के लिए
झुकना होता है,
टूटना होता है,
अपने आत्म सम्मान को
कदमों में किसी के
गिरवी रखना होता है,
कभी खुद की नजरों में गिर कर
हम खुद से ही
आंखें नहीं मिला पाते,
पर दूसरों के लिए
बारंबार एक नई दौड़ में
शामिल हो जाते हैं,
जिसमे सब ख़तम होता है हमारा,
और हम इस भुलावे में
जीत का जश्न मनाते हैं,
जैसे हमने सब पा लिया
पर पाया कुछ नहीं
सिर्फ खोया है
खुद को खुद से,
और वो प्यार
जो पाक है हमारे खुद के अंदर
धीरे धीरे सूख जाता है,
जब हम खुद से प्यार नहीं करते
तो दूसरों के प्यार को
अहसास भी नहीं कर सकते,
खुद से प्यार करो,
खुद को खुश रखो,
क्या रखा है भागने में,
सबने थमना है,
रुकना है यहां,
हर रिश्ते में
अगर खुशियों को तलाश करना है
खुशियों के रंग भरना है तो
"खुद से प्यार करो"
खुद से बस....।