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Sadhana Mishra samishra

Others

5.0  

Sadhana Mishra samishra

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" माँ "....

" माँ "....

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माँ तू एक शरीर नहीं, एक भावना है

तुझमें समायी सृष्टि की, सभी संभावना है

तेरे पवित्र गोद में ही, प्रस्फुटित होती हूँ मैं

बिना तेरे नहीं मेरा कभी, कहीं कोई वजूद है


ममता ही माँ की भावना का, चरम सत्य है

बिना इसके यह नारी जीवन, अस्त है, व्यर्थ है

बनती है कोई स्त्री, तब ही माँ है

जब होता इस भावना का, अविर्भाव है


जन्मता है जब कोई, एक जीव नया

जन्मती है उसी दिन, एक नयी "माँ" है

मां तू है तो यह, स्वर्ग सी धरा है

वरना यहाँ किसी का, क्या धरा है


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