दायरा-ए-मोहब्बत
दायरा-ए-मोहब्बत
दायरा-ए-मोहब्बत बढ़ा कर रहा हूँ,
समा लूंगा सब को खुदा कर रहा हूँ।
मैं लुटाकर निधियां स्वर्ग की सभी,
बौने हाथों को भी विस्तृत कर रहा हूँ।
मैं जो शब को सिरहाने पे रखकर,
अपनी नींदों में सुबह कर रहा हूँ।
दायरा-ए-मोहब्बत बढ़ा कर रहा हूँ,
समा लूंगा सब को खुदा कर रहा हूँ।
मैं लुटाकर निधियां स्वर्ग की सभी,
बौने हाथों को भी विस्तृत कर रहा हूँ।
मैं जो शब को सिरहाने पे रखकर,
अपनी नींदों में सुबह कर रहा हूँ।