Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

ख्याल...

ख्याल...

1 min
463


जिस्म ढकने के लिये कपड़े तो पहने हैं,

फिर भी ख्याल नंगे घुमते हैं।


केहने को बातें करके खाली हो रहे हैं,

फिर भी अंदर ख्याल नंगे घुमते हैं।


माँ ने अच्छे संस्कार दिये, बाप ने दीक्षा दी,

बस ख्याल अभी भी नंगे घुमते हैं।


कहने को मंदिर जाते हैं, मस्जिद जाते हैैं,

सीढियां उतरते ही ख्याल नंगे घुमते हैं।


कीमती चीजों के शौक़ रखते है,

पूरे होते हूए भी ख्याल नंगे घुमते है।


नशे करके रातों को सो तो जाते हैं,

सुबह उठते ही ख्याल नंगे घुमते हैं।


समझते तो हैं क्या अच्छा क्या बुरा,

याद होके भी ख्याल नंगे ही घुमते है।


कभी दो घूंट अंदर गये, तो क्या अच्छा

सब बुरा, फिर सब ख्याल बाहर नंगे ही घुमते हैं।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Ganesh Kambli

Similar hindi poem from Abstract