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कैसे सौंप दूँ मैं

कैसे सौंप दूँ मैं

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कैसे सौंप दूँ मैं रिश्तों कि बागडोर, आप तो नफ़रत के सौदागर बन बैठे है

आप के कारण ही मैंने ज़िन्दगी में दुःख झेले हैं, सुख - चैन सबकुछ खोया है !

क्या आप लौटा सकती हैं फिर से मेरी खुशहाल ज़िन्दगी ? जो सपने सजाये थे

आप जियो अपने मर्ज़ी से, मगर मेरा फटा आकाश सिलवाऊ कौन से दर्ज़ी से?


गैरों से क्या शिकायत करूँ ? जहाँ अपने ही खामोश ...मुँह फेरे बैठे है

रिश्ते हो गये सस्ते...निभाएं भी तो कैसे ? मतलब कि है दुनिया सारी !

झूठ, फ़रेब , मक्कारी के माहौल में हम, ईमानदारी बेचने बैठे हैं

सत्य के वातावरण में , असत्य बहुत दिनो तक नहीं टिकेगा बस धीरज रखना है !


अरे तू क्या जाने रिश्तों की अहमियत ...तुझे तो सिर्फ कांटा बन कर चूभना आता है

तू नहीं समझ सकी कभी मेरा प्यार ढेर सारा और न अपने रिश्तों कि बंदगी !.

ज़िन्दगी तो सुख - दुःख का मेला है बस उसे कभी हिम्मत से कभी प्यार से समझना है

सीखना है तो पंछी से सीखो .. आकाश में उड़ान तो भरते हैं मगर घोंसला बनाना कभी नहीं भूलते !


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