कवि और मै
कवि और मै
कवि और मै दो जिंदगी के छोर हैं,
एक सोचता है एक लिखता हैI
क्या कभी मै सोच सकूँगा कि क्या कवि की छितिज सोच है
कि स्वयं मै ही उन्माद अवसाद के बावजूद सहर्ष ही वह स्पष्ट है
और मै अपनी ही धुन में ही मस्त हूँ लेकिन फिर भी अस्पष्ट हूँ I
कि कवि और मै क्या हैं I
एक तथ्य है एक कागज़ है I
निम्न से ऊपर कोई प्रकृति नई खोज कर विद्यमान करता है
कि कवि की आँखे भी मोती है
और मै सम्मिलित होकर एक ओर खड़ा अदृश्य रूप का निर्माण करता हूँI
शायद मै भी सोच सकता
किसी की कल्पना को, किसी की छितिज को
कवि और मै कोई और नही खुद एक इंसान है I
ना तथ्य, ना कागज़ सिर्फ एक धुन की राग है
कवि और मै एक छोर हैं.... I
अमन श्रीवास्तव