"संतोष "
"संतोष "
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विश्व भरा हो मोती - हीरों से
मगर मुझे क्या
रहें पड़ोसी महलों - कोठी में
मगर मुझे क्या
मेरे पास है विश्व- सुन्दरी
दिखलाऊँगा
शायद हो जाऐ तुम्हारी भी
समझाऊँगा
बात कर रहा हूँ मैं जिसकी
गुण है वह - संतोषी होना
पास यदि आ जाऐ तुम्हारे
सब ही धूरि- समान है होना
छोड़ ज्ञान युगों - युगों का
भौतिकता के पीछे भागे
पाओगे फ़कीरी में तुम मस्ती
देखो 'संतोष' से प्यार जताके .
सर्वोत्तम जो चीज़ विश्व में
है वह बस संतोषी होना
अर्थ हीन सब हो जाऐंगे
क्या मोती , क्या माणिक- सोना !
वरना इस rat - race में
अगर जीत भी तुम जाओगे
यह जान - लो फिर भी तुम
एक rat ही कहलाओगे ।