चुभ रहें हैं आज भी भाग-1
चुभ रहें हैं आज भी भाग-1
अपनों ने दिए जो जख्म,
चुभ रहें हैं - आज भी।
है शान्त कुछ, बंद कोने मे,
और कुछ तड़प रहे हैं - आज भी।
अपनों ने दिए जख्म
कुछ को तो अश्कों ने सम्भाले,
कुछ और, शायद,
मचल रहें हैं - आज भी।
अपनों ने दिए जख्म
ये तौफ़ा, है अपनों का,
दिखाऊं कैसे, किसी को,
छुपा है कई शिकवे,
दिल में मेरे - आज भी।
अपनों ने दिए जख्म
खामोश हूँ, देख के फितरत उनकी,
मेरे दिल में शोले,
जल रहें हैं - आज भी।
अपनों ने दिए जख्म
उन्हें क्या ?
मेरे गमों से मतलब,
दबा है दर्द कितना,
दिल में मेरे - आज भी।
अपनों ने दिए जख्म...
(क्रमश:)