इतवार छोटा पड़ गया
इतवार छोटा पड़ गया
इतवार छोटा पड़ गया
--
कैसे कह देता कोई किरदार छोटा पड़ गया।
जब कहानी में लिखा अखबार छोटा पड़ गया।।
सादगी का नूर चेहरे से टपकता है हूजूर।
मैने देखा जौहरी बाजार छोटा पड़ गया।।
मुस्कुराहट ले के आया था वो सबके वास्ते।
इतनी खुशियां आ गईं घर-बार छोटा पड़ गया।।
दर्जनों किस्से-कहानी खुद ही चलकर आ गए।
उससे जब भी मैं मिला इतवार छोटा पड़ गया।।
इक भरोसा ही मेरा मुझसे सदा लड़ता रहा।
हां ये सच है उससे मैं हर बार छोटा पड़ गया।।
उसने तो अहसास के बदले में सबकुछ दे दिया।
फायदे नुकसान का व्यापार छोटा पड़ गया।।
गांव का बिछड़ा कोई रिश्ता शहर में जब मिला।
रूपया, डालर हो कि दीनार छोटा पड़ गया।।
मेरे सिर पर हाथ रखकर मुश्किलें सब ले गया।
एक दुआ के सामने हर वार छोटा पड़ गया ।।
चाहतों की उंगलियों ने उसका कांधा छू लिया।
सोने, चांदी, मोतियों का हार छोटा पड़ गया।।
प्रताप सोमवंशी