तन्हा
तन्हा
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जिगर तन्हा है, नजर तन्हा
अपने तो शामों सहर तन्हा
कहने को तो साथ सभी है
दिल अपना है मगर तन्हा
छूट गया है राह में साया
कट रहा है अब सफ़र तन्हा
कैसे पूछते ज़ुल्म का सबब
आया न कभी सितमगर तन्हा
कहाँ कोई हमें जानता है यहाँ
बीती है सारी उमर तन्हा