आखिर करें तो क्या करें?
आखिर करें तो क्या करें?
मजबूरी से समझौता करके उसने, इरादे रखे थे बड़े ही नेक
वक्त का भी कैसा दौर है देखो, आज चुनना पड़ेगा कोई एक
दिल लगा बैठी जाने कैसे अब, उसे तो उसका प्यार चाहिए
कुरबान ना जाए माँ बाप कहीं, उसे अपना परिवार चाहिए
माना छोड़ दे जो घर अपना, तो एक नया सा घर बनाएगी
क्या समझ पाओगे दर्द तुम, वो अपनों के बिना कैसे रह पाएगी
दुनिया पड़ी है जो ऐसे लोगों को, चरित्रहिन जैसे नाम देते हैं
रिश्तेदारों भी क्या जो बातों बातों में, खूब चटकारे लेते हैं।
इस डर से उस पगली ने आखिर, कदमों को पीछे हटा दिया
सम्मान बना रहे इसलिए, माँ बाप को गले से लगा लिया।
खुश करने के लिए अपनों को, अपने सपनों को वो बर्बाद करें
छोड़ दिया जिस महबूब से, अब वो उसका बेवफा नाम धरें
दिल दिया और किसी को तो , गैर के संग जीने में मजा कहाँ
किसकी नजरों में गलत थी, जो मिली थी उसे सजा यहाँ
छोड़े चाहे जिसको भी वो, पछतावा हमेशा रहता है
दोनों ही हालातों में, कोई न कोई गलत तो कहता है
मर्जी से ना जिंदगी मिली, तो खुद फांसी को गले लगाया
चिट्ठी खोली लोगों ने तो, कुछ ऐसा उसमें लिखा पाया
किसी एक को चुनना मुश्किल है दोनों को ही खोने से डरें
दुनिया वालो से पूछा उसने मेरे जैसी लड़की करें तो क्या करे
खत्म हुई कहानी उसकी, पर सवाल तो काफी सच्चा है
अब ढूँढना है कि आखिर, कौन सा जवाब अच्छा है
भरी महफ़िल में कहा मैनें, मानों कुछ ऐसा हो जाए
बिछड़ी हुई महबूबा तुम्हारी, तुमसे फिर मिलने को आए
कहें कि प्यार है मुझे और सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ
कहा लोगों ने अपनाऊँगा, अगर मैं उसका यार हूँ।
सोचों जरा दूसरों की बेटी में, तुम अपनी को खोजते हो
बात आए घर की लड़की पर, तो उसे हमेशा रोकते हो
बैठे हुए बुजुर्ग ने कहा,माना माँ बाप को छोड़ना मजबूरी है
पर जीवनसाथी हो मन का, यह भी तो बहुत जरूरी है
छोड़ दे परिवार मगर, आगे जाकर बहुत बड़ा नाम करे
दुनिया वाले उसकी वजह से, माँ बाप का सम्मान करें
बुरा कहने वालों की नजरों में, तब ऊंचा उनका सर होगा
फिर देखना इस रास्ते को, अपनाने वाला हर घर होगा
बात तो बड़े पते की है, सभी को लगा यही सच्चा होगा
मेरी नजर से भी देखें तो, यही जवाब अच्छा होगा