कोई मेरे अधरों से खेले
और मैं चुंबन देके इतराऊं।
कोई मुझसे लिपटे यूँ कुछ
जो मैं उसके बंधन बंध जाऊं।
मैं उसकी सारी अकुलाहट
और वो केवट मेरी नैया का
वो नवल प्रेम का अंकुर हो
और मैं विशाल तरु छाया का
वो मुझ आशा का दीप बने
मैं उसकी ज्योति बन जाऊं
शब्दों में, संकेतों में
वाणी के विरल उवाचों में
वो बैठ धरा पर धम्भ करे
मैं संग समय मे पीछे जाऊं।
वो मेरे सारे सुख लेले
मैं उस पर फिरभी वारी जाऊं।
वो आने वाला पुत्र बने
मैं उसकी माता बन जाऊं।