रे चलो विश्व शांति की ओर
रे चलो विश्व शांति की ओर
कलकल गंगा-सा गान करो,
सन्मुख खुद का अब ध्यान धरो,
चक्रवर्ती सम्राट भी खुद से,
जो जीत न पायेगा,
रे महामूर्ख रे धूर्त बता,
खुद को क्या मुँह दिखलायेगा,
ज्वालामुखियों का ताप छोड़,
पग बढ़ा आज सागर की ओर,
युधोन्माद ये सनक छोड़,
रे चलो विश्व शांति की ओर ।
ये पर्वत पठार सागर विशाल,
तेरे कृत्यों के गवाह बने,
तेरे अहम की ज्वाला से,
कितने प्रकृति पुत्र जले,
ये धरा सींचती श्वाश-श्वाश,
ये प्रक्रति पेड़ अनुचर तेरे,
तेरे कारण विषाक्त ज्वार,
तेरे कर्म से शापित सवेरे,
जाग्रत कर जीवन ज्योति को,
पग बढ़ा आज पूरब की ओर,
युधोन्माद ये सनक छोड़,
रे चलो विश्व शांति की ओर ।
किस असमंजस में डोल रहा,
तेरे ताप से हिमखंड ख़ौल रहा,
भू पर जो त्राही-त्राही है,
तेरे कृत्य से माँ अकुलाई है,
जा आज सुखद मुस्कान छेड़,
रे संगीतों की तान छेड़,
आत्मा से खुद का नाता जोड़,
तू कदम बढ़ा अब खुद की ओर,
युधोन्माद ये सनक छोड़,
रे चलो विश्व शांति की ओर ।
उपवन-उपवन डाली-डाली,
कोयल की कूक उभरती है,
नव पल्लव में देखो प्रक्रति की,
नव मुस्कान बिखरती है,
प्रकृति के दो रूपों में,
तू चल चुन लें अब ये मधुर मुस्कान,
कर दे वीणा के तारों से,
संगीतमय झंकृत सारा संसार,
खिल उठे प्रक्रति का रोम रोम,
चल उठा कदम सावन की ओर,
युधोन्माद ये सनक छोड़,
रे चलो विश्व शांति की ओर ।