यादें चोरी कर लाऊँगा
यादें चोरी कर लाऊँगा
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एक दिन चुपके से
घुस जाऊँगा
घर के अंदर,
रात अन्धेरे
जब सन्नाटा होगा
हर ओर
और पकड़ लूँगा
अपनी बचपन की यादों को
जो खेल रही होंगी
नींद से लुका छुपी
कहीं बिस्तर के कोने में।
ढूंढ़ निकालूँगा
उन निशानों को
जो मेरे कदमों ने बनाये थे।
दीवारों पे बनाई वो लकीरें
जिनके लिये रोज डांट
पड़ती थी।
कैद कर लाऊँगा
उन्हें इस मोबाइल में।
वो आवाज जब मैंने पहली दफा
"माँ" पुकारा था
कैद कर लाऊँगा उसे भी।
एक ही रात में
सारी यादें
पकड़ लाऊँगा।
आवाज नहीं करूंगा
अगर माँ जग गई
तो पकड़ कर सुला देगी।