हत्यारे
हत्यारे
वो हाथ में
लेकर खंज़र
मेरे सपनों को
मार देते हैं
वो अपनी तीखी
जुबां से
दिल चीर देते हैं
रोज़ मारते हैं
वो तिल तिल करके
न जाने कितने
मासूमो को
अपनी हत्याओ की
गिनती बढ़ाने में
रोज़ मरती है
ख्वाहिशें कितनी
हर देहली पे
न जाने कितनी
खामोशी दम
तोड़ देती है
ये वे हत्याएं है
जिनकी गिनती
नही होती
और न खून
निकलता है
लेकिन
वो मानसिक रूप से
हमे घायल
कर देती है।
और ये हत्यारे
खुले आम घूमते हैं।