गीत
गीत
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मैं तुम्हारी मुस्कुराहटों को गीत दूं
तुम हमारे गीत के सुरों को रूप दो।
चलो चलें विजय के गीत साथ ले
मंजिलों से दूर हैं ये काफ़िले।
काफ़िलों को एक नया मार्ग दो
एक नई उमंग इक विचार दो।
अंधकार छा रहा है क्यूं यहां
सत्य लड़खड़ा रहा है क्यूं यहां।
इक प्रकाश पुंज तुम बिखेर दो
क्रान्ति गीत है ये नया छेड़ दो।
आदमी क्यूं आदमी को डस रहा
हर शहर क्यूं लाश से है पट रहा।
आदमी के हर ज़हर निकाल कर
इक नये समाज को तुम नींव दो।
मैं तुम्हारी मुस्कुराहटों को गीत दूं
तुम हमारे गीत के सुरों को रूप दो।