शोले
शोले
आओ सुनाओ तुम्हें कहानी फिल्म शोले का।
यह सुन कर सब का मन डोले गा।
यह फ़िल्म है मेरे जन्म से पहले की।
यह फ़िल्म है एक मजबूर बाप के बदले की।
इस फ़िल्म मे है जय वीरू दो सच्चे यार।
इस फ़िल्म मे बसंती, ठाकुर और गब्बर जैसे किरदार।
इस फ़िल्म की शुरुआत होती है गांव रामगढ़ से।
यहां के लोग डरते है गब्बर नाम डाकू से।
गब्बर हजारों मासूम और ठाकुर के पूरे परिवार की जान ली।
ठाकुर गब्बर को मार डाले गा यह बात उसने ठान ली।
गब्बर काट दिया ठाकुर का दोनों हाथ।
कोई ना था बनने वाला ठाकुर का दोनों हाथ।
ठाकुर कैसे लिखे गा गब्बर की मौत,
अपने कटे हुए हाथों से।
वह नहीं जीत सकता है यह जंग,
अपने सिर्फ बातों से।
उसे जीतने के लिए उठाना होगा हथियार।
वह उठा ना सकता क्योंकि वह था बिल्कुल लाचार।
वह भूल गया था क्या होता है प्यार।
तभी उसे याद आए जय, वीरू बहादुर यार।
उसे आश थी ये दोनों करेगें उसके लिए काम।
ला देंगे रामगढ़ में खुसियो की शाम।
वह थे एक नम्बर के बदमाश और चोर।
ठाकुर जानता था उन्हें लाने का तोड़।
ठाकुर की बहादुरी और पैसे के चलते हुए हुए दोनों तैयार।
गांव आते ही दोनों किए प्यार।
गांव मे रहकर,
गब्बर को पकड़ने का योजना बढ़ता रहा।
दोनों का प्यार का सिलसिला चलता रहा।
जय ठाकुर कि विद्वा बहू से किया प्यार का इजहार।
वीरू बसंती से पानी की टंकी से किया अपने प्यार का इज़हार।
गबर को होने लगा एहसास डर का।
तब उसे इंतजार था एक अवशर का।
उसे मिला एक अवशर होली का।
उस दिन निशाना बनाया सैकड़ो लोगों को अपनी गोली का।
दोनों ने गबर को मार भगाया।
तभी ठाकुर ने अपनी आत्म कथा उन दोनों को सुनाया।
अगले दिन
गब्बर ने बसंती को उठवाया,
जय, वीरू के पास यह संदेश पहुँचाया।
ठाकुर गब्बर मे हुआ आखरी जंग।
जिसमें छूट गया वीरू के साथ जय का संग।
ठाकुर ने गब्बर को मौत से गले मिलवाया।
दोनों ने गांव को खुसियो से गले मिलवाया।
फ़िल्म हो गया ख़त्म।
कबिता मे है ना दम।