शिकायत
शिकायत
है शिकायत आपकी के
हम समझ नहीं पाते
तुम यूँही खिलखीला जाती हो
और हम हस भी नहीं पाते
आंखें ये झील सी कहीं डूब न जाये इनमें डरते हैं
होठों पे टपकते लफ़्ज़ों के कतराने से डरते हैं
तुम राह चलते कभी मुड़कर देखना
हमारा ही दिदार होगा
इन आँखों से कभी आंख लडा कर देखो
इनमे तुम्हारे लिये प्यार ही होगा
तुम ख़ामोशी से रुसवा कर
यूँ रूठ के चले जाते
तुम यूँही खिलखील जाती हो और
हम हस भी नहीं पाते !!