एक नयी प्रेम कविता !
एक नयी प्रेम कविता !
लिखता हूँ मैं जब
अक्षर मेरे प्रेम के,
तेरी सुकोमल काया पर;
आहों और कराहों का
वो दौर ले जाता है मुझे,
मेरी ही उम्र के उस
तरुणाई वाले पड़ाव पर;
तुम करती हो प्रेरित
मुझे पार ले जाने को,
इस जहाँ से दूर और बहुत दूर;
रक्त का प्रवाह अपने
चरम पर होता है,
और सुकोमल तेरी काया पर;
मैं अपने प्रेम के अक्षर
लिखता ही चला जाता हूँ;
सियाही जब कलम
की उतर आती है,
तेरी काया पर तब
मैं ही अपने लिखे;
उन अक्षरो को पढ़ कर
तुम्ही पर ही लिखी,
मेरी एक नयी प्रेम
कविता तुम्हे ही एक बार;
फिर सुनाता हूँ !