जीये जा रही हूँ
जीये जा रही हूँ
यूँ तुम बिन जीये जा रही हूँ
जैसे कोई गुनाह किय जा रही हूँ
और जो वो अधूरी पंक्तियाँ
मुझपर लिख डाली तुमने
बस वही गुनगुनाये जा रही हूँ
बार-बार कई बार तुम्हारे स्पर्श को
महसूस करती हूँ मैं
"अनन्त"उन्ही हर पलों की
कल्पना करती हूँ मैं
सत्य,निःसंदेह उन्ही फुहारों से
रोम को सिहराय जा रही हूँ
यूँ तुम बिन जीये जा रही हूँ।