प्रेम
प्रेम
प्रेम तो शाश्वत है,
यह कब मिटता है. |
धरती दिखती है हरी -भरी,
ऑसमा जब बरसता है |
चंद्र नहीं तो तारे बतायेंगें,
चकोर यूं किसे देखता है |
नदी को रास्ता देकर,
पहाड़ भी सह्रदयी दिखता है |
जो होती है रौशनी दिये से,
संग पतंगा क्यों जलता है |
प्रेम तो शाश्वत है,
यह कब मिटता है |
कण कण में छुपा है प्यार,
गौर करें तो सब दिखता है |
हर पल नया, फिर भी पुरातन,
हर बार नया इतिहास रचता है |
दुरियॉ क्या फासला करेगी दरम्यान ,
मन तो मन के पास होता है |
जिंदगी कम है जीने के लिए,
लडा़ई में वक्त क्यों जाया करता है |
शंकाओ को छोड़,
खुशी पा लें "वंदे "
कौन यहां अमर रहता है |
प्रेम तो शाश्वत है,
यह कब मिटता है |