Duvidha
Duvidha
प्रेम लिखूँ, उपहास लिखूँ मैं विरह लिखूँ या राज़ लिखूँ?
या सुख-दुःख से यूँ सनी हुई दिल में बजती कोई साज लिखूँ?
कोई देश गान, कोई सुधागान या फिर अपना संताप लिखूँ ?
दुविधा, दुविधा, दुविधा है मैं अब किसकी आवाज़ लिखूँ?
आवाज़ लिखूँ उस नन्हें की जो सड़क पे लेटा है भूखा?
या विरह लिखूँ उन पत्तों का जो गिरा पड़ा है अब सूखा?
या उन गलियों की बात लिखूँ जो देह बेच कर है खाता?
या उस नेता का ध्येय लिखूँ जो स्वार्थसिद्धि को है जाता?
सब ज्ञात तुझे, आभास तुझे किस बात का मैं अब नाज़ लिखूँ?
दुविधा, दुविधा, दुविधा है मैं अब किसका आवाज़ लिखूँ?
या लिखूँ कहानी बेटे का जो बाप का रिश्ता ना समझे?
या लिखूँ व्यथा उस माता का जो अपना बच्चा खो बैठे?
या गढ़ूं शब्द जिनसे मिलकर कई तरह के अब तक ग्रन्थ बने?
या लिखूँ मैं जीवनशैली को कभी डाकू थे फिर संत बने?
या भारत माँ की रक्षा में हर प्रहरी का जज़्बात लिखूँ?
दुविधा, दुविधा, दुविधा है मैं अब किसका आवाज़ लिखूँ?
मैं रीति लिखूँ , कुरीति लिखूँ या लिखूँ निर्मलता गंगाजल का?
या चित्रण करूँ भारत माँ के गर्भस्थ मनोरम स्थल का?
या हश्र लिखूँ उस रावण का जो सीता को हाथ लगाता हो?
या करूँ गान उस देश का जो दुनिया को धर्म सिखाता हो?
दुविधा की दुविधा आन पड़ी अब कौन सा मैं अवसाद लिखूँ?
दुविधा, दुविधा, दुविधा है मैं अब किसका आवाज़ लिखूँ?