दो बूंद आंसू
दो बूंद आंसू
दो बूंद आंसू
मेरी प्यारी कविता
कभी आती नहीं
हर वक़्त उनकी कल्पना करती रही
अचानक सामने आकर
दो पल के लिए खड़ी होकर
मुस्कराती हुई चली गई I
जब तुम आती हो
मैं कितना खुश होता
कभी नही सोचा
जब तुम जाती हो
मैं कितना रोता
तुम्हे नहीं पता
दिल धड़कता और कहता
जब तुम्हे जाना है फिर क्यों आती
तुम मुस्कराती और कहती
आती हूँ इसलिए की जाने के बाद
बाकी जिन्दगी तुम मेरी खवाबों में गुजारो
मैं तुम्हारा सहारा बनूंगी
मैं तो गुजर रहा हूँ
पर सहारा दो बूंद आंसू
कवि : देबाशिस भट्टाचार्य