जीवनसाथी
जीवनसाथी
जिन्दगी की ग़ज़ल तुम्हारे साथ गुनगुनाऊँ मैं,
कोई मीठी-सी धुन, यूँ ही तरन्नुम में गाऊँ मैं,
कुछ ख़ामोशियाँ तुम कहो, कुछ निगाहों से सुनूँ मैं,
ख़्वाब धड़कनों से तुम बुनो, कुछ सतरंगी से बुनूँ मैं|
तुम हो साथ, तो आज़ाद, बेपरवाह-सी हूँ मैं,
तुम ठहरे साहिल-से, अल्हड़-सी नादाँ मौज हूँ मैं,
क़तरा-क़तरा गुज़रते वक़्त के साथ, होता है यूँ एहसास ;
कुछ मुझ से हो गये हो तुम, और कुछ तुम-सी हो गई हूँ मैं|