तुझमें महक जाऊँ मैं
तुझमें महक जाऊँ मैं
ओस में भीग कर थोड़ा सा दहक जाऊँ मैं,
आज ख्वाहिश हुई कि तुझमें महक जाऊँ मैं।
दूरियाँ इस कदर सिमटे वो दरमियाँ अपने,
तुम संभालो मुझे औ फिर भी बहक जाऊँ मैं।
डूबती ज़ीस्त की मानिंद तड़पने दे मुझे,
इतना तड़पूँ कि न फिर और तड़प पाऊँ मैं।
तिरे आगोश में सिमटूँ तो इत्र बन जाऊँ,
डूब कर इश्क़ में फिर बर्क़ सी लहराऊँ मैं।
तिश्नगी हद से गुजर जाये दीद से पहले,
बन के सावन बरस के तुझमें भीग जाऊँ मैं।
तेरी महफूज पनाहों की दिलकशी की कसम,
दम निकल जाए यूँ ही और न कुछ चाहूँ मैं।