जिन्दगी की शाम
जिन्दगी की शाम
ये जो दिख रहा धुंधला आसमान है
ये ही ज़िन्दगी की शाम है
आँखो पर मोटा चश्मा.
हाथ मे तगड़ा डंडा
ना ही अब जोड़ो में जान है
ये ही ज़िन्दगी।
बातो का समझ न आना.
पुरानी बातों का दोहराना
बुढ़ापे की यही पहचान है।
ये ही ज़िन्दगी।
बच्चो से झिड़की खाना,
खुद को दकियानुसी कहलवाना,
अब जंग खाती इनकी मुस्कान है
ये ही ज़िन्दगी।
खाना पीना अब नील हुआ,
चलना भी मुश्किल हुआ,
टुटे हुए से सारे अरमान है
ये ही ज़िन्दगी।
अब न कोई इनका ठोर रहा,
वक्त पर न अब ज़ोर रहा
जा चुका अब सारा सामान है
ये ही ज़िन्दगी।
पेट काट-काट धन जोड़ा,
उनकी खातिर तन मन और धन छोड़ा
अब इनका खाली हाथ महान है
ये ही ज़िन्दगी।