तर्पण-भोग
तर्पण-भोग
पितृ – मोक्ष अमावस्या की रात
स्वर्ग सिधार चुके सज्जन को
अपने दरवाजे पर खड़ा देख मैंने पूछा –
आप यहाँ कैसे ?
वे बड़ी निरीह आवाज में बोले –
बहुत भूखा हूँ , कुछ खिला दो
मैंने कहा – आज आपके बेटे ने
आपका श्राद्ध किया ,
हजारों लोगों को भोजन कराया
आपकी आत्मा तृप्त रहे
इसलिए पैसे को पानी की तरह बहाया
फिर भी आप भूखे हैं ?
उन्होंने कहा – बेटी !
जिस बेटे ने जीते जी
कभी मेरी सुधि नहीं ली
उसके तर्पण – भोग को
मैं कैसे स्वीकार करूँ ?
अरे, मैं मर गया तो क्या
स्वाभिमान अब भी बाकी है
मैं युगों-युगों तक
भूखा – प्यासा रह जाउँगा
किंतु बेटे के श्राद्ध – तर्पण को
हाथ नहीं लगाऊँगा !