आज फिर से
आज फिर से
आज फिर से मिलके अंगीठी जलाये..
पुराने सपनो को फिर से सजाये।
छत पे टक-टकी लगाये
फिर से चाँद को निहारे,
चल दे
फिर से
ओस से भीगे रास्तो पे
हाथ में हाथ डाल के,
इस जाते हुए वक्त को
रोक ले,
ना जाये कही हमें छोडकर...
चल
फिर से
एक सिरहाने पे सिर रखकर
नये सपने बुने।
मौन होकर
कल की धिमी आवाज़ को सुने,
हरियाले खेतों में हम भी लहलहाये..
चल
फिर से
तितली के पँखो पर होकर सवार उडते चले ।
थाम कर हाथ यूँ ही जिंदगी भर के लिए साथ चले।