मित्र मेरे !
मित्र मेरे !
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तुम क्या जानो ?
आज अचानक मुझमें
कैसा अघट-घट गया है
रूई सा हलका हो गया हूँ
तुम्हारी मौन सहानुभूति के स्पर्श मात्र से
मेरा अहिल्या सा जड़-जीवन
स्पन्दन से भर गया है
पत्थर सी निरर्थक काया को
एक नया जीवन संदेश मिला है
आज जाना है मैंने
अतीत के बिना
कोई वर्तमान भी नहीं होता
और भविष्य
वर्तमान की गोद में ही खेलता है
आज जाना है मैंने
मेरा अतीत ही भविष्य है मेरा ।
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