नाम होने से पहले
नाम होने से पहले
क़ामयाबी पाने के लिए कितनी बार नाक़ाम होता है,
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।
इन्सान को नहीं, यहाँ उसके रूतबे को सलाम होता है,
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।
यारियाँ और रिश्तेदारियाँ अब मतलब की बन चुकीं,
आजकल लोग तभी याद करते जब कोई काम होता है।
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।
आम आदमी का अफ़साना कुछ इस कदर है अशीश,
कभी कोई ख़्वाब तो कभी कोई ख़्वाब नीलाम होता है।
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।
मेहनतें और कोशिशें तो सब करते अपने हिसाब से,
पर हर शख़्स का वक़्त मुक़द्दर का गुलाम होता है।
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।
वो मंज़िल को पाने के लिए गलत रास्ते नहीं चुनते,
जो जानते कि बुरे काम का बुरा ही अंजाम होता है।
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।
तब शायर कलम और कागज़ की तलाश करने लगता,
जब ज़हन में उभर रहा कोई नया कलाम होता है।
नाम होने से पहले अक्सर हर आदमी आम होता है।