शहर
शहर
मैं तो इश्क तुझसे कर रहा था
पर इश्क हो रहा था इस शहर से
तुझे नए –नए नज़ारे दिखाने के बहाने
तेरे साथ के कुछ लम्हे चुराना
दूर वाली दुकान की चाट खाना
यूं तेरे साथ सारे मंदिर घूम डाले
अभी नए मंदिर ढूंढ रहा हूँ
तुझे घुमाने के लिए
तू यूं ही ख्याल बयां करती
क्या चले उस दुकान पर
मैं दो-तीन और दुकानों को
तुझे दिखा लाता
मुझे न पसंद आई थी
बनावटी कॉकटेल वाली बातें
तुझे जो पसंद हैं ये ही
तेरे बिना चस्का ले ही लेता हूँ
मैं शहर को बारीकी से देख रहा था
कुछ नया मिले
जिस पर बातें हो सके
शहर की हलचलों में भी
यूं मसरूफ़ होने लगा था
कि कुछ पल बढ़ ही जाएँ
तेरे साथ के
बस में यूं कंधे पर
सिर टिकाकर तेरा सो जाना
मुझे शिकायत थी रास्तों से
क्यूँ लम्हो में तय हुए ये
रास्तों से होता सफर
मंज़िल तक भी पहुंचेगा
मैं इसको शायद भूल ही गया था
या यूं कहूँ
भटकना चाहता था इन्ही रास्तों पर
पर पड़ाव कभी तो आएगा ही
ये शहर, ये रास्ते
ये आबोहवा
तेरे बिन तेरे होने का
अहसास कराती हैं
मैं सच में जीना चाहता हूँ
ये मुझे तुझमें ले जाती हैं
तेरा जाना, तेरा फैसला था
ये शहर तो छोड़ मैं भी दूँ
पर मुझे वहम से तो कोई निकाले
कि मैं तेरे इश्क में हूँ
या ये इश्क है इस शहर का
कुछ भी हो
तुझे पाया है इस शहर में मैंने
धड़कने मेरी भी,
तेरी भी गूँजती रहेंगी यहाँ
जब तक हम सुनते रहेंगे...!