बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
मैं लिखता हूँ फिर से बहुत दिनों के बाद,
क्या कहूँ क्या लिखूँ या करूँ संवाद ।
मैं लिखता हूँ फिर से बहुत दिनों के बाद ।।
कल ही सुना कोई चला छोटी सी उम्र में,
लोग बेचारा बेचारा कह रहे हाय करे
पर लगा आने वाले तूफानों से वो बच गया,
वरना क्या वो भी करता कुछ फरियाद ।
मैं लिखता हूँ फिर से बहुत दिनों के बाद ।।
वो जीता तो क्या दुनिया जीने देती
पल पल बेरोज़गारी उसे नित ताने देती ।
कभी गरीबी कचोटती उसे कभी अपने,
परेशान हो क्या वो मौत की करता फरियाद।
मैं लिखता हूँ फिर से बहुत दिनों के बाद ।।
बीमारी की तरह हो जाये जब बेरोजगारी
पल पल तिल तिल शख्स शख्स न रहे,
जिम्मेदारीयों का बोझ लिये वो जाता कहाँ
लड़ता लड़ता कब तक मुस्कुराता यहाँ
कभी तो बिखरना था कड़ियों को टूटने के बाद।
मैं लिखता हूँ फिर से बहुत दिनों के बाद ।।