ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िंदगी ने कहा ,
देख तू हार गया !
मैं जीत रही हूँ ।।
मैंने कहा ,
अभी तो साँसे बाक़ी है !!
ऐ ज़िंदगी !!!तेरा इम्तिहान भी तो अभी बाक़ी है ।।
ज़िंदगी ने कहा ,
देखती हूँ कितना और लड़ेगा तू !!
मुश्किलों का वक़्त अभी बाक़ी है ।।
मैंने कहा ,
देख लेना सब हँस के सह जाऊँगा मैं ,
जीतने का जज़्बा अभी मुझमें बाक़ी है ।।
ज़िंदगी ने कहा ,
छीन लूँगी तेरी ये मुस्कान !!
की तुझ पे अभी ग़मों का साया बाक़ी है !!
मैंने कहा ,
छीन सके मेरी मुस्कान इतना तुझ में दम नहीं !!
अभी तो तुझे मेरी ज़िंदादिली देखना बाक़ी है ।।
फिर ज़िंदगी ने कहा ,
रोने वाले को कुछ नहीं मिलता यहाँ !!
हँसने वालो के क़दमों में होता है ये जहाँ ।।।
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